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________________ (२०९) वशपणे बहु खोटा कार्यों कर्या, अधन्य छे मारा ते आत्माने ! हवे हुं फरीने तेवा कार्यों नहीं करीश, मिथ्या मे दुष्कृत भूयादपुनः क्रिययान्वितं ' 'मारा करेला पापो फरीने नहीं करवापणे मिथ्या-निष्फल बनो.' व्यवहारमां वैद्यो रोगीना रोगनी शान्ति माटे प्रथम विरेचन आदि प्राप्या पछी वर्तमान दर्दोनी शान्ति करवाने अन्य अन्य औषधीओ आपे छे तेमज अहीं आत्मशुद्धि विषयमां पण ज्यां सुधी पूर्वना पापोनी गर्दा-निन्दा श्रादि प्रकारथी पापनो संबंध अल्प न थाय त्यां सुधी नवा नवा पापोनो बंध पण अलगो न ज थाय. अतएव ग्रंथकर्ताए अहीं प्रथम पूर्वना पापोनो क्षय करवा माटे गर्दा करवानुं बताव्युं. त्यारपछी विशेष शुद्धि माटे हवे 'अकरण' ए पदथी वर्तमाननी शुद्धि दर्शावे के एटले वर्तमानमां पापो सेववा नहीं. पूर्वना पापोनो संस्कार अल्प थाय त्यारे ज नवा पापो थता अटके, तेमज भविष्यना पापो बंध करवानो उपाय ए ज के-'तदचिन्ता' कोइ पण क्षणे पापकार्यों करवानो संकल्प मात्र पण न थवा देवो, कारण के पापवृत्ति प्रेरनारा प्रथम संकल्पो-स्मरणो ज प्रगटे छे, अने पछी ज तेनो अनुराग तथा ग्रहण करवानी तीव्र लालसाप्रो जन्मे छे. एटले जेर्नु मूल ज कापी नाख्युं होय तेनुं वृक्ष क्यांथी वधे ? न ज वधे. ज्यां स्मरण थयुं त्यां अवश्य अनुराग उपजे अने अनुराग थया पछी लेवाने मन ललचाय
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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