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________________ ( १७६ ) जेमणे सूत्र - अर्थनो अभ्यास कर्यो होय, महाव्रतोनी भावनाओनो अभ्यास try कर्यो होय एवा तथा साक्षात् तीर्थ समान गुरुमहाराज आदिनी भक्ति, सेवा, वैयावच्च, विनय आदि करवा. भावार्थ ए के - धर्ममार्गनी सिद्धि या गुणो सिवाय अपूर्ण ज कहेवाय, एटले सिद्धिनी सिद्धि करवा आ गुणो तो अक् श्यमेव आत्माए प्राप्त करवा जोइए. जे आत्मा गुणीजनोनो सत्कार विनय आदि करे छे ते ज आत्मा धर्ममार्गनी सिद्धि पाये छे, अतः विद्वानो स्वात्माने गुणी बनाववा माटे प्रधानमार्ग एज दर्शाव्यो छे के - तीर्थभूत गुरु आदिनो विनय विगेरे करवो. महाव्रत तथा दर्शनादिनी भावनानुं स्वरूप आचारांग तथा तत्त्वार्थसूत्रमांकयुं छे ते विचारखुं. 46 39 व्रत- भावना " तत्स्थैर्यार्थ भावना: पंच पंच " त० अ०७ सू० ३ | जिनभगवंतोए प्रत्येक महात्रतोनी स्थिरता माटे पांच पांच भावनाओ दर्शावी छे. ' प्राणातिपातविरमण' नामक पहेला महाव्रतनी रक्षा माटे - इर्यासमिति - साडात्रण हाथ जेटली जमीनमां बराबर जोइने चालवुं मनोगुप्ति-अशुभ विचारोने बंध करवा, एषण समिति - ४२ दोष रहित आहार ग्रहण करवो, आदानभंडमर्त्तेनिक्षेपणासमिति - वस्त्र - पात्र आदि तपासीपडिलेही पछी ग्रहण करवा के मूकवा, आहारादि तपासीने खावा. ' मृषावादविरमणव्रत ' नामे बीजा व्रतनी रक्षा माटेहितमितं वचन बोलवु क्रोधनो त्याग, लोभनो त्याग, आकस्मिक ܐ "
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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