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________________ (१६०) के एम शास्त्रमा खुल्लु जणाव्युं छे पाटलो अत्रे अधिक खुलासो जाणवो. हेतु ए के-निर्मलबोधनुं मुख्य फल अध्यवसायो अही कायम होवाथी ते विमलबोध ज कहेवाय. पावा प्रात्मा माटे ग्रंथकर्ता जणावे के के-' स्यादियं च परा', 'प्रणिधान' आदि आशय संबंधी अनुभव प्राप्ति श्रा प्रात्माने उत्कृष्ट-प्राधान्यतावाली होय, अतः आ आत्माने ज पुष्टिशुद्धिनो खास अनुबंध लाभ थाय. " पाटलुंजणावी हवे 'प्रणिधान' आदि भाशयोनी नामग्रहणपूर्वक संख्या ग्रंथकर्ता जणावे छे. "प्रणिधिप्रवृत्तिविघ्न जयसिद्धिविनियोगभेदतः प्रायः । धर्मज्ञैराख्यातः शुभाशुयः पञ्चधाऽत्र विधौ ॥ ३-६ ॥ मूलार्थ-पुष्टि-शुद्धिनी अनुबंधविधिमां मुख्य हेतु अने पवित्र एवा पांच आशयो-आत्माना विशिष्टाध्यवसायो धर्मज्ञ महापुरुषोए श्रा प्रमाणे कह्या छे. प्रणिधि, प्रवृत्ति, विघ्नजय, सिद्धि अने विनियोग ए पांच शुभ आशयो जाणवा. " स्पष्टीकरण" श्रा आर्यानो भाव स्पष्ट ज छे. पुष्टि तथा शुद्धिनो अनुबंध पवित्र एवा शुभ परिणामोने आधारे ज यायः एम दर्शाव्युं हतुं. अतः प्रा परिणामो माटे नहीं ग्रंथकर्चा
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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