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________________ .. ( १५३) मुक्तिस्थान आत्मा पामे छे. निदान के-ा जन्ममां यदि श्रा आत्मानी मुक्ति न थाय तो पण अभ्यास करेल ते ते क्रियामोथी उत्तर (पर) जन्ममा उच्च स्थान पामी त्यां तेने ते ज क्रियाना संस्कारो उदयमां आवे छे, अने फरी आ संस्कारनुं एटलुं उत्कृष्ट बल आत्मा पामे के के जेथी पोते सर्व कर्मनो क्षय करवाने समर्थ बने छे एटले अात्मा तात्त्विकी मुक्ति जरुर पामे छे. आज परमार्थ दशवैकालिकना चतुर्थ अध्ययनमां शय्यंभवमूरिजी मानकमुनिजीना कल्याण माटे बहु सुंदर रीते जणावे छे, जेनो टुंक भावार्थ पाठकोने उपयोगी धारी अमे अहीं प्राप्यो छे. " क्रियानो अनुबंध" " जो आत्मा जीवादिकनुं स्वरूप बराबर समजे तो पछी " विषयभोगादिकथी अवश्य विरक्त थाय, एटले गमे तेवा " सुंदर पण भोगोनो बाह्य-आभ्यंतर उभय रीते त्याग करे, " अने आ त्याग-परिणाम प्राप्त थवाथी आत्मा अवश्यमेव गृह" संसारथी विमुख थइ अनगार-साधुपणुं स्वीकारे. साधुपणुं " स्वीकार्या पछी स्वात्माना पूर्ण कल्याण माटे उत्कृष्ट संवर"मार्ग ( जेथी नवा कर्म न आवे )मां आरूढ थइ असाधारण " धर्ममां स्थिर थाय छे. आथी मिथ्यात्वभावथी पूर्वोपार्जित “ कर्मरूपी रजनो नाश करे छे. कर्मरजनो नाश करवाथी " आत्मा सर्व पदार्थने प्रकाश करनारं एवं केवलज्ञान पामे छे, " लोकालोकनुं स्वरूप जाणनार केवलज्ञानी जिनभगवंत बने "छे. केवलज्ञानी थया बाद अवशेष कर्मनो सर्वथा नाश करवा
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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