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________________ ( १३६ ) मूलार्थः - धमनी परीक्षामां निपुण एवा बुधजनोए प्रथम धर्मनुं लक्षण इम्मेशा या प्रमाणे जाणवुं के जे सर्व शास्त्रोवडे अतिशुद्ध होय ने फरी आदि, मध्य तथा अंतमां कल्याण फलने अर्पण करे. " बुधने सूचना स्पष्टीकरण - पदार्थनुं स्वरूप विचारवा पूर्वे प्रथम विद्वानो पदार्थना लक्षणनो विचार करे छे, कारण के लक्षणे करीने अव्यवस्थित पदार्थ स्वरूपमां पण अव्यवस्थित ज होय छे, एवं लक्षणद्वारा पदार्थनुं सामान्यतः स्वरूप पण समजवामां आवी जवाथी पश्चात् विशेष स्वरूप समजवाने सरलता पण थाय छे. अतएव ग्रंथमां उद्दिश्य पदार्थोनुं स्वरूप वर्णन करवा पूर्वे समर्थ विद्वानो पदार्थनुं लक्षण पहेलाथी ज प्रकांडतया कथन करे छे. या नियमनो बाध न थाय ते माटे ग्रंथकर्ता आ प्रकरणानी आदिमांज ग्रंथपरीक्षक विद्वानो प्रति स्पष्ट विद्वत प्रणालिकानुं दर्शन करावे के के - अत्र धर्मस्वरूप - निरूपणमां बुधजनोए हम्मेशा धर्मनुं लक्षण आगलनी आर्यामां जणावशे तथाप्रकारे जाणवु, धर्मपरी कोए तथा धर्मप्सु (धर्म इच्छनारा) महानुभावोए धर्म ग्रहण करवा पूर्वे अहीं जे धर्मनुं लक्षण कह्युं छे तथाप्रकारनुं लक्षण स्वीकृत, स्वीकार्यमा धर्ममां अविरोधपणे सुघटित छे के नहीं ? एवो विचार प्राज्ञहृदयथी अवश्य करवो, जेथी मुग्धहृदयने पदार्थ स्वीकार्या पी पचात्ताप के खेदनो प्रसंग न यावे; कारण के घणी वार धर्मश्रद्धालु विद्वानोनुं पण मन आतुरतामां 39
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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