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(१३१) परमार्थ ए के-योगियो 'समापत्ति' ध्याननी सिद्धि माटे ज श्रा सम्यक्त्व आदि योगो धारे छे. ज्यां सुधी भा ध्यानसिद्धि न थाय त्यां सुधी योगियोनो योगप्रयत्न अर्थहीन जेवो मान्यो छे, माटे योगियोनी सर्व कार्यसिद्धि प्रा 'समापत्ति' ध्यानथी ज थाय छे. अतएव आ 'समापत्ति' ने नितान्त योगियोनी माता श्री जणावी. "निर्वाणफलदर्शन" ___ एज वात अन्यत्र कही छे-" सम्यक्त्वज्ञानचारित्रयोगः सद्योग उच्यते । एतद्योगाद्धि योगी स्यात् परमब्रह्मसाधकः" ॥१॥ अन्तमां ग्रंथकर्ता प्रा 'समापत्ति' ने 'निर्वाणफलप्रदा प्रोक्ता' निर्वाण-मोक्षफलदात्री महर्षियोए कही छे एवो निर्देश करे छे. निष्कर्ष ए केश्रा 'समापत्ति' प्राप्त थया पछी मोक्षफल अवश्यमेव प्रात्माने सुलभ्य थाय छे. "इलिका भ्रमरीं ध्यायन भ्रमरित्वमुपतिष्ठते" ' इयल भ्रमरीतुं ध्यान करवाथी छेवटे भ्रमरीपणाने पामे छे' तथाप्रकारे योगियो पण परमात्मानुं 'समापत्ति' रूप ध्यान पामी परमात्मावस्थाने-मोक्षभावने पामे छे, श्राम अनुभववेदी सर्वदर्शी महापुरुषो अने पूर्वधर प्राचार्यों कहे छे. टुंकमां आगमानुमारी प्रवर्तक स्वहृदयमां पूर्वोक्त न्याय्ये आगमद्वाराए परमात्माने स्थापन करी ते परमात्मरूप आलंबनथी 'समापत्ति' रूप खरुं ध्यान पामी छेवटे मोक्षस्थानमां विराजे छे. अतएव आगमवचननी आराधना ते ज वास्तव धर्म