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(११४) कयन करवू. पागमतत्त्व "आत्माऽस्ति स च परिणामी." ए श्लोकथी ग्रंथकार प्रथम प्रकरणमा जणावी गया के तेज तत्त्व अहीं 'बुध' वर्गने उपदेश, अने वधुमां प्रवचनमौलिक रहस्य दर्शावq जे हवे पछी ग्रंथकर्ता जणावे छे. मूलमा जे 'तु' शब्द छे ते एक्कार अर्थमां होवाथी निश्चयेन पूर्वोक्त ज तत्त्व विगेरे कथन करवू. ___"दर्शित संबंधवालो बुध योग्य उपदेशनो प्रकार आचार्यश्री दर्शावे छे." वचनाराधनया खलु
धर्मस्तदबाधया त्वधर्म इति ॥ इदमत्र धर्मगुह्यं
सर्वस्वं चैतदेवास्य ॥२-१२॥ मूलार्थ-सर्वज्ञ प्रवचनोक्त वचन-प्राज्ञानु अाराधन-प्राज्ञानुकूल वर्तन करवू ते ज सत्यधर्म अने तेनी विराधना-प्रतिकूल वर्तन आचर, तेज अधर्म जाणवो. अत्र सर्वज्ञागममां एज धर्मनुं गृढ रहस्य छे ने ए ज धर्मर्नु मुख्य सर्वस्व सार छेत्रा सिवाय धर्मर्नु अन्य कांइ तत्त्व नथी. "बुध-देशना"
स्पष्टीकरण-ग्रहीं 'वचनं-आगमं' वचन एटले आगमसिध्धान्त-प्रवचन, अने बुध एटले पंडित-तत्वज्ञ ए अयों