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________________ (१०१) " उपसंहार" अहीं था त्रिकोटिशुद्ध सर्वज्ञशास्त्र सिवाय अन्य क्यु शास्त्र होय ? ए रीते त्रणे परीक्षामां सर्वज्ञ भगवंत महावीरनु वचन अबाधित सिद्ध थवाथी तदुक्त आठ प्रवचनमाता पण नितान्त शुद्ध, अबाध्य जाणवी; माटे साधुए ए रीतनी निर्दोष आठ प्रवचनमाता अहोनिश अवश्य पालन करवी, ए प्रमाणे उपदेशके मध्यमबुद्धि लोकोने उपदेश आपवो. वधुमां उपदेशके" अमीषामान्तरदर्शन मिति" या कष, छेद, तापमां मुख्य कोण कोण ? समर्थ, असमर्थ कोण ? परस्पर भिन्नता केटली ? विगेरे जरुर समजावq. " त्रिधा हितकारी" फरी मुनियोनो आचार उपदेशके "श्राद्यतमध्ययोगैर्हितदं” आदि, मध्य अने अन्तमां हितदायी एवो आ श्राचार छ एम जणाव. एटले ईर्यासमिति विगेरे साधुअोनो आचार आदि, मध्य अने अन्तमां हेतु, स्वरूप तथा अनुबंधे करी सर्वथा परमपवित्र निर्दोष दर्शाव्यो छे. प्रथम तो साधुने जीवोनी दया-रक्षा अर्थे अने दुष्ट कार्यों बंध करवा माटे ईर्यासमिति आदि पालन करवानुं जणाव्युं छे, माटे या प्राचार हेतुरूपेण निर्दोष जाणवो. फर ईर्यासमिति आदि स्वयं जीवोनी रक्षा-दयारूप होवाथी स्वरूपेण निर्मल जाणवो. ईर्यासमिति आदि समितिमा अहोनिश सावधान मुनिने कदापि
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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