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एवा अमारा व्यस्तवमां उत्पन्न थतो दोष मलिनारंजवालो वा सदारंजवालो होय तोपण ते उत्सर्गनी रक्षाने माटेज प्रव
बे. ते दोषअनुबंध हिंसारूप नहीं होवाथी बीजा दोषने उछेदन करना a. कारणके संपत्तिरूप तु फलनी इवाथी रहित बे. एज विरोध बे. यज्ञ विगेरेमां या मर्यादा बिलकुल नथी. गायत्री विगेरे जप करवाथी अंतःकरणानी शुद्धि थवानो संजव बे, परंतु स्वरूपथी पुष्ट एवा श्येनयाग विगेरेश्री सत्व ( - तःकरण )नी शुद्धिनो संभव नथी. कारण के तेवा कार्यथी सत्वशुद्धि करवी अशक्य बे. तेथी सत्वशुचिना फलने उद्देशी यज्ञ विगेरेमा यती हिंसा सत्व शुद्धिनुं कारणरूप नहीं थवाथी मर्यादा ते कार्यमा बिलकुल नथी ने जिनपूजामां लाज, हानिनो विचार करतां, अपवादना श्राश्रयमां पण सत्वशुद्धिनो संव नथी. ५५
ज्यारे बीजी गति रही नहीं त्यारे पूजामां अन्यथा रीते सिहिनी शंका करे .
नन्वेवं किमु पूजयापि जवतां सिद्धयत्यवद्यो ज्जिता, नावापद्विनिवारणो चितगुणः सामायिकादेरपि । सत्यं योधिकरोति दर्शन गुणोल्लासाय वित्तव्यये, तस्थेयं महते गुणाय विफलो हेतुर्न हेत्वंतरात् ॥५६॥
अर्थ- जो एम ने तो तमारे दोषवाली पूजा शामाटे करवी जोइए ? ते पूजाथी सर्यु, कारण के निर्दोष सामायिक विगेरेथी नावापत्ति निवारण करनार, योग्य गुणनी सिद्धि थाय बे.
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