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जाणवानुं नही रेहेवाथी उजयने आनंदस्वरूप शांतरसनो उद्बोध यायचे. ३१
पुनः विशे विशेष कहे.
नानासंघसमागमात् सुकृतवत्सद्गंधद् स्तित्रज, स्वस्तिप्रश्नपरंपरापरीचयादप्यद्भुतोद्भावना | वीणावेणुमृदंगसंगमचमत्काराच्च नृत्योत्सव, स्फाराईद्गुणलीनता जिनयनाद् जेदमप्लावना | ३ | - अनेक देशना संघना समागमथी ने सुकृती पुरुष रूप गंध दस्तिना समूह साथे कल्याण प्रश्ननी चर्चाथ अद्भूत रसनो उद्बोध थायडे, तथा वीणा वेणु ने मृदंग विगेरे संगीतना चमत्कारथी ने नृत्योत्सव समये अर्हतना गुणोमां लीन थई विजाव, अनुभावरूप अभिनय करवाथी नेद मनो नाश थाय. ३२
विशेषार्थ - अनेक देशना संघना समागमथी ने सुकृतवाला सजन पुरुषोरूप गंध हस्तिना समूहनी साथे कल्याण प्रश्ननी परंपराथी अर्थात् तेमना परिचयथी अद्भूत रसनो उद्बोध थायडे, अर्थात् सनयोग तथा श्रवंचक क्रमश्री परम समाधिनो लाज था. हिं सऊन पुरुषने गंध हस्तिनुं रूप युं, तेथी एम सूचव्यं के जेम गंध हस्तिना गंधमात्रथी प्रतिदस्तिनो पराजव थाय, तेम सानना वादप्रसारथी वादीरूप प्रतिहस्तिनो पराजव थायडे. वली वीणा, वेणु ने मृदंग ए तौर्यत्रिक संगी'तनी संपत्ति थी जे चमत्कार थायडे, तेथी तथा नृत्योत्सव समये