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(३१) अर्थः- जिनेश्वर लगवंतनी प्रतिमाना पूजनमां देवताउने चार प्रकारे नेद रहेला . प्रथम नेद, सद्धर्म व्यवसाय पणाश्री जे. बीजो नेद शक्रस्तव ( नमुथ्थुणं ) नी प्रक्रियाथी बे. त्रीजो नेद, नावस्तुतिथी प्रकाशित एवा मनोहर स्तवनोश्री बे, अने चोथो नेद लोक प्रणामश्री के. बालक जेवा द्रुपको जो आ नेदने न जोर शकशे तो तेढ लौकिकमार्ग (नोजनादि ) मां पण बीजाना सोगन उपर केम विश्वास करी शकशे ? १४
विशेषार्थः- बालक जेवा लुंपको देवताउथी कराती जगवंतनी प्रतिमा पूजामां कां विशेष लेद जोता नथी. ते प्रतिमा पूजन चार नेदथी करे बे. सधर्म व्यवसाय, शक्रस्तव प्रक्रिया विगेरे पदोथी नेद थाय जे. प्रथम नेदमां सधर्मना व्यवसाय पूर्वक जिनप्रतिमान अर्चन , ते नंदापुष्करिणी वापिकाना आनुषंगिक ( अवांतर ) पणे पूजननुं नेदक , अर्थात् पृथकपणुं बतावनारुं . ते सधर्मना व्यवसायनो नाव व्यवसाय सनामां संनवता क्योपशमनुं निमित्त बे, अने जावानुगत सम्यग् दृष्टिनी क्रियानुं बीजी क्रियानी जेम धर्मपणुं . व्यवसायसन्ना शुल अध्यवसायनुं निमित्त ने अने तेना क्षेत्रादिकपण कर्मक्षयोपशम विगेरेना हेतु रूप से, ते जिनशासनमां असिड नथी. जे अनुग त धर्म व्यवहार बे ते तो शुद्ध चित्तने पुष्टि करनार अनुगत एवी क्रिया अने ते चोथा गुणस्थानकनी क्रियाने अनुसरती जे, तेमज दर्शनना आचार रूप . तेथी दर्शन व्यवसाय रूप जिनप्रतिमानी अर्चा विगेरे देवताउने सिद्ध . ते विषे श्री गणांग सूत्रमा कडं वे के “ सम्यक् धर्म व्यवसाय त्रण प्रकारनो