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(१४) अर्थः-जेए लगवंतनी मूर्तिने नमस्कार कर्यो नथी, तेनुं हृदय अंधकारमय , जेठए तेनी स्तुति करी नथी तेनुं मुख विषमय ने अने जेए तेनां दर्शन कर्या नथी तेमनी दृष्टि धूम्र धाराधी व्याप्त जे. देवताउँए, चारण मुनियोए अने तत्ववेत्ताउए आनंदथी वंदना करेती ते प्रतिमानी जे उपासना करे , तेउनी बुद्धि कृतार्थ ने, अने तेमना जन्म पवित्र बे.
विशेषार्थ- जेए जगवंतनी प्रतिमाने नमस्कार कर्यो नश्री, तेमनुं हृदय अंधकारमय ने, कारण के हृदयमां नमस्कार करवाना परिणामरूप प्रकाशनो अनाव होवाथी न नमन करवारूप अंधकार रह्या करे जे. जेए जगवंतनी प्रतिमानी स्तुति करी नथी, तेमनुं मुख विषमय ने, कारण के स्तुतिरूप सुलाषित अमृतनो तेमना मुखमां अनाव ले. अने तेथी विषनुं सत्व रहेलुं जे. जेए जगवंतनी प्रतिमार्नु अवलोकन कर्यु नथी, तेमनी दृष्टि धुम्र धाराथी व्याप्त बे, कारण के जगतनी दृष्टिने अमृतसिंचन समान तृप्ति श्रापनार ते प्रतिमाना दर्शननो तेमने अनाव होवाथी तेमनां नेत्र धुम्रधाराथी आवृत श्रयेलां ने, एम सिद्ध थाय जे. वली अंधकार, विष अने धुम्र विगेरे दोषथी तेमनामां तेवी जातना बीजा पण दोष ने, एम निश्चय थाय . (अहिं काव्यलिंग अलंकार साथे अतिशयोक्ति अलंकार .) जे कृतार्थ बुधिवाला पंडितो ए जगवंतनी प्रतिमानी उपासना करे , तेमना जन्म निरंतर मिथ्यात्व रूप मलना परित्यागथी पवित्र ने. ते प्रतिमा सुर, असुर, व्यंतर अने ज्योतिषी देवताउए, जंघाचारण, विद्याचारण मुनियोए अने तत्ववेत्ता पुरुषोए