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आवेला श्रीवीरप्रभु, कलिकुंड पार्श्व भगवान ने प्रौढिने प्राप्त थयेला श्रीश्यामला पार्श्वनाथ आत्रणे जिनेश्वरो तमारूं सदा मंगल करो. १
to पुरुष स्नात्र महोत्सवो ने पुष्पादिथी निरंतर जेनी पूजा करे बे, सत्पुरुषो ने मुनिजनो हृदयकमलमां जावथी जेने स्थापन करेने श्री पंचासर पार्श्वनाथ नामथी जे श्रेष्ठ प्रसिद्धिने पामेला बे, ते श्री पार्श्वनाथ प्रभु चिंतामणिथी प अधिक तमारां वांबतो पूर्ण करो. २
महिमाथी ज्ञानरूप प्रजा आपनारा सारस्वत ( सरस्वती संबंधी) तेजनुं ध्यान करी, पुनमीच्या गवना अधीश्वर श्रीभावप्रभसूरिए पोताना शिष्य ज्योतीरल माटे प्रतिमा शतक वृत्ति उपर सूत्रना अर्थने सूचवनारी या टीका तेथी कांइ जुदी करेली बे. ३-४
कुष्ट लुंपाक (जैनानास - लोंका ) पुरुषोए प्रतिमा पूजनविघिनो स्फुट रीते निषेध करेल बे. तेना शनो आश्रय लइ केटलाएक गनांतरी ए तेमनी जेम प्रतिमाने तजी दीधी बे. पाश दोषना खाएरूप केटलाएके प्रतिमाने मिश्रपक्षमां मेली पूजवा योग्य कहेली ने उत्तम पंडितोएज पुण्यफल पनारी ते निर्जरा रुप प्रतिमा पूजेली बे. ए
विशेषार्थ - सो ग्रंथ रचनारा महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी ए आ प्रतिमा शतक ग्रंथ रचेलो बे. तेमां प्रतिमा सबंधी शंकानुं निराकरण करवानी इवाथी प्रतिमानी स्तुतिरूप प्रथम श्लोक इष्ट बीजना ध्यानपूर्वक कहे बे.