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शोजा प्रख्यात बे तथा उम्र कीर्ति ने तेजने धारण कारनार श्रीनय विजय गुरूना चरणकमलनी जे सेवा करनारा बे, एवा तप गहना मुनि श्रीयशोविजयजीए प्रगट युक्ति युक्त या प्रतिमा शतक रचेलुं बे. १०४
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विशेषार्थ - शास्त्र तत्वने जे मनन करे ते मुनि एवा सार्थक नामवाला तपागना मुनि ने श्रीवीतराग परमात्मानी ऋषिती क्ति करवाथी जेना यशनी शोजा प्रख्याति पामेली बे विशेषणथी कविए पोतानुं नाम यशोविजय सूचव्यं) ने उम्र कीर्ति ने तेजने धारण करनारा श्रीनय विजय गुरूना चरणकमलनी जे सेवा करनारा बे एवा श्रीयशोविजय उपाध्यायजीए प्रगट युक्ति प्रमाणवालुं श्र प्रतिमा शतक रचेलुं बे. १०४ ॥ इति प्रतिमाशतकं समाप्तं ॥
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अर्हतो मंगलं मे स्युः सिद्धाश्च मम मंगलं । साधवो मंगलं मे स्युः जैनधर्मश्च मंगलं ॥ १ ॥ अथ प्रशस्ति भाषांतर
देवतार्जए नमस्कार करेला ने प्राणीने वांबित पवामां कल्पवृक्ष समान श्रीवर्धमान जिनेंद्र जयवंत वर्ते बे. जे जगवंतनुं निर्मल शासन या जगतमां गाढ मिथ्यात्वने दारू अने सुखने उत्पन्न करनारूं बे. १ तेना पट्टरूप कमलने सूर्यसमान एवा श्री सुधर्मास्वामी गणधर तेमनाथी उत्पन्न थया. त्यारबाद अनुक्रमे चारित्रने जजनारा एवा केटलाएक विधान सूरि उत्पन्न थयेला बे. ते पछी तेमना वंशमां श्री पूर्णिमा गहना