________________
( १११ )
मित शांत रसमय प्रतिमानी एकाग्रताए उपासना करो. जे प्रतिमा, मोहरूपी प्रचंड दावानल के जे सर्व शमतारूप पवनने दहन करनार बे तेने शमाववामां मेघवृष्टि रूप बे. वली जे प्रतिमा शमताने वहन करनार होवाथी शमतारूप प्रवादनी नदीरूप वे, तथा जे प्रतिमा अविलंबे सर्व सिद्धि पनारी होवाथी सत्पुरुषोना वांबितने श्रापवामां कपलतारूप बेने जे प्रतिमा संसाररूपी उम्र अंधकारने टालवामां सूर्यनी तीव्र कान्तिरूप बे. ज्यारे विवेकरूप दिवस तरुण होय त्यारे मोहनी बाया पण रहेती नथी. ८०
उपर बे श्लोकवडे जगवंतनी प्रतिमानी स्तुति करी हवे बीजा वादनो आरंभ करे वे छाने तेथी पाशचंद्रनो मत तोडी पाडे बे.
श्राद्धेन स्वजनुः फले जिनमतात् सारं गृहीत्वा खिलं, त्रैलोक्याधिपपूजने कलुषता मोक्षार्थिनामुच्यतां । धृत्वा धर्मधियं विशुद्धमनसा द्रव्यस्तवे त्यज्यतां, मिश्रोसावितिलं बितः पथि परैः पाशोपि चाशोजनः ०१
अर्थ- मोक्षार्थी श्रावक जैन प्रवचनमांथी सर्व तात्पर्य ग्रहण करी पोताना मनुष्य जन्मना फलरूप जगत्पति श्रीतीर्थकरना पूजनमां शंका तजी ने शुद्ध मन करी व्यस्तवने विषे धर्मबुद्धि धारण करी, परमतवालाई ए या अव्यस्तव मिश्र एटले धर्म धर्म रूप से " एवो जे मार्गमां पाश नाख्यो वे तेने पण बोडीदे. १
८८