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( १०७) निष्ठामां श्रेष्ठ गुणवाला कर्त्ताउँनो अधिकार शुछ आशयनी स्फुर्त्तिने माटे जे. जो तेवी प्रतिष्ठाविधिनी सामग्रीनो अभाव होय तो ते प्रत्यनिझा के जे बाह्य सामग्री विना मनमांथी प्राप्त थ होय तो पण तेथी प्रतिष्ठानुं फल इष्ट थाय. के. ७६
नावार्थ- पोताना हृदय संबंधी जाव- अध्यवसायना उपचारथी ए प्रतिष्ठा जिनबिंबने विषे कथन करेली बे. जेम सत्वर करेली प्रत्यनिज्ञा- एंधाणीनी पूजा विशेषफल आपनारी थाय. अहिं विशेषफल, प्रतिमानी श्राकृतिमात्र आलंबनना अध्यवसायना फलनु अतिशायी जाणवू तेमज प्रतिष्ठित विषयवालु समजवू. जे यथार्थ प्रत्यजिज्ञान- एंधाणी ने ते पूजाना फलनुं प्रयोजनरूप में; तेथी ए प्रतिष्ठामा श्रेष्ठगुणवाला कर्ता
नो अधिकार शुद्ध श्राशयनी स्फुर्त्तिने माटे के कारण के, श्रा प्रतिमा विशेष गुणवान पुरुषे प्रतिष्ठित करेली , एवी एंधाणी करवाथी विशिष्ट अध्यवसाय, प्रत्यद सिघपणुं थाय जे. अने जो तेवी प्रतिष्ठाविधिनी सामग्रीनो अनाव होय तो ते प्रत्यनिझा के जे बाह्य सामग्री विना मनमांथी प्राप्त थइ होय तो पण तेथी प्रतिष्ठान फल देखवामां आवे . सारांश के कटुक दिगंबरोए प्रतिष्ठा करेल तथा व्यलिंगीना व्यथी जे प्रतिष्ठा करवामां आवेली होय ते शिवाय बीजी सर्व प्रतिमा वंदवा योग्य . आ प्रमाणे श्री हीरविजयसूरिनी आज्ञा . ७६
एवी शकानो शेष नाग पण निराश थर जाय ते कहे. चैत्येनायतनत्वमुक्तमथयत्तीर्थातरीयग्रहात्तत्किं तन्ननु धर्मतिग्रहवशादृष्टश्रयाशीतिचेत् ।