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अनर्थका नाश तो होता ही है. इसलिये राजसभाका परिचय अवश्य कराना चाहिये. विदेशके आचार तथा व्यवहार स्पष्टतः चतानेका कारण यह हैं कि, परदेशके आचारव्यवहारका ज्ञान न होवे और कारणवश कहीं जाना पडे तो वहां के लोग इसे परदेशी समझकर सहज ही में व्यसनके जाल में फंसा दें. अतएव प्रथमही से भलीभांति समझा देना चाहिये. पिताकी तरह माताने भी पुत्र तथा पुत्रवधूके सम्बन्धमें यथासम्भव उचित आचरण पालन करना माताने सौतेले eshh सम्बन्ध में विशेष उचितआचरण पालना. कारण किं, वह प्रायः सहज ही में भिन्नभाव समझने लग जाता है. इस विषय में सौतेली माकी दी हुई उडदकी रावडी ओकनेवाले ( वमन करनेवाले ) पुत्रका उदाहरण जानो. ॥ २३ ॥
सयणाण समुचिअभिणं, जं ते निअगेहवुद्धिकज्जेसु ।। संमाणिज्ज सयावि हु, करिज्ज हाणीसुवि सभीवे || २४॥ अर्थ:--पिता, माता तथा स्त्रीके पक्षके लोग स्वजन कहलाते हैं. उनके सम्बन्ध में पुरुषका उचितआचरण इस प्रकार है. अपने घरमें पुत्रजन्म तथा विवाह सगाई प्रमुख मंगल कार्य होवे तब उनका सदा आदर सत्कार करना, वैसेही उनका किसी प्रकारकी हानि होजावे तो अपने पास रखना.
यमवि सिं वसणूससु होअन्नमंतिअभि सया ॥ स्खणिविवाण रोगावराण कायव्यमुद्धरणं ।। २५ ।।