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(४६५) सामन्ने मणुअत्ते, जं केई पाउणंति इह कित्तिं ॥
सं मुणह निविअप्पं, उचिआचरणस्स माहप्पं ॥१॥ अर्थः--मनुष्यमात्रका मनुष्यत्व समान होते हुए कुछ मनुष्य ही इस लोकमें यश पाते हैं, यह उचितआचरणकी महिमा है, यह निश्चय जानो। .
त पुण पिइमाइसहोअरेसु पणइणिअवच्चसयणेसु ॥ - गुरुजणनायरपरतित्थिएसु पुरिसेण कायध्वं ॥२॥
अर्थः--उस उचितआचरणके नौ प्रकार हैं:-१ पितासम्बन्धी, २ मातासम्बन्धी, ३ सहोदरभ्रातासम्बन्धी, ४ . स्त्रीसम्बन्धी, ५ सन्तानसम्बन्धी, ६ नातेदारोंसम्बन्धी, ७ गुरुजनसम्बन्धी, ८ नगरके रहीस लोगों सम्बंधी तथा ९ अन्यदर्शनी सम्बंधी. इस प्रकार नौप्रकारका उचिताचरण प्रत्येकमनुष्यको करना चाहिये. (२)
पिताके सम्बन्धमें मन, वचन, कायासे तीन प्रकारका उचितआचरण करना पडता है, हितोपदेशमालाकार कहता है कि:
पिउणो तणुसुस्सूसं, विणएणं किंकरव्व कुणइ सयं ॥ वयणंपि से पडिच्छइ, वयणाओ अपडिअं चेव ॥३॥
अर्थः-सेवककी भांति स्वयं विनयपूर्वक पिताजीकी शरीरसेवा करना. यथा--उनके पैर धोना तथा दाबना, वृद्धावस्थामें उनको उठाना बैठाना, देशकालके अनुसार उनकी प्रकृतिके