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(३९७) तो जिस धनुष्य, बाण, प्रत्यंचा तथा लोहेसे हरिण मरा, उन जीवोंको भी हिंसा ( पांच क्रिया ) लगती है. ऐसा कहा है. अस्तु, चतुरपुरुषोंने किसी जगह धनहानिआदि हो जाय तो उससे मन में उदासीनता न लाना. कारण कि, उदासीनता न करना यही लक्ष्मीका मूल है. कहा है कि--
सुव्यवसायिनि कुशले, क्लेशसहिष्णो समुद्यतारम्भे । नरि पृष्ठतो विलग्ने, यास्यति दूरं कियलक्ष्मीः १ ॥१॥ दृढ निश्चयवाला, कुशल, चाहे कितना ही क्लेश हो उसे सहन करनेवाला और निशिदिन उद्यम करनेवाला मनुष्य पीछे पड जावे तो लक्ष्मी कितनी दूर जा सकती है? जहां धन उर्पाजन किया जाता है, वहां थोडा बहुत धन तो नष्ट होता ही है। कृषकको बोये हुए बीजसे उत्पन्न हुए धान्यके पर्वत समान ढेरके ढेर मिलते हैं तथापि चोया हुआ बीज तो उसे पीछा नहीं मिलता. वैसेही जहां बहुतसा लाभ होता है वहां थोडी हानि तो सहनी ही पडती है । कभी दुर्दैवसे विशेष हानि होजाय, तो भी विवेकी पुरुषने दीनता न करनी चाहिये, किन्तु ऊपर कही हुई रीतिके अनुसार हानि हुआ द्रव्य धर्मार्थ सोच लेना. ऐसा करनेका मार्ग न होवे तो उसका मनसे त्याग कर देना व लेशमात्र भी उदासोनता न रखनी चाहिये. कहा है कि
१ धनुष्य, बाणआदिके मूलजीवोंको.