________________
(३७६
" तू तेरे पुत्रको पागल जाहिर कर " तदनुसार करनेसे धन श्रेष्ठी सुखी हुआ......इत्यादि. _ व्यापार आदि करनेवाले लोग हाथसे काम करने वाले हैं. दूतआदिका काम करनेवाले लोग पगसे काम करने वाले हैं. बोझा उठाने वालेआदि लोग मस्तकसे काम करने वाले हैं। १ राजाकी, २ राजाके अमलदार लोगोंकी, ३ श्रेष्ठीकी और ४ दूसरे लोगोंकी मिलकर चार प्रकारकी सेवा है. राजादिककी सेवा रात्रिदिवस परवशताआदि भोगना पडनेसे ऐसे वैसे मनुष्यसे नहीं हो सकती है । कहा है कि
मौना मूकः प्रवचनपटुर्वातिको जल्पको वा, धृष्टः पार्श्वे भवति च तथा दूरतश्चाप्रगल्भः । क्षान्त्या भीरुयदि न सहते प्रायशो नाभिजामः सेवाधर्म : परमगहनो योगिनामप्यगम्यः ॥ १ ॥
जो सेवक कुछ न बोले तो गूंगा कहलावे , जो स्पष्ट बोले तो बकवादी, जो पास बैठे रहे तो ढीठ, जो दूर बैठे तो बुद्धिहनि, स्वामी कहे वह सर्व सहन करे तो कायर और जो न सहन करे तो कुलहीन कहलाता है, इसलिये योगीजन भी न जान सकते ऐसा सेवाधर्म महान् कठिन है। जो अपनी उन्नति होनेके निमित्त नीचा सिर नमावे, अपनी आजीविकाके निमित्त प्राण तक देनेको तैयार हो जाय, और सुखप्राप्तिके हेतु दुःखी होवे, ऐसे सेवकसे बढकर दूसरा कौन मूर्ख होगा?