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सर्व दिव्य कन्या और कुमार साथ २ गायन और नृत्य करते हैं, इस प्रसंगमें बत्तीसबद्ध नाटकके नाम इस प्रकार हैं:स्वस्तिक, श्रीवत्स, नंद्यावर्त, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्ययुग्म, दर्पण, इन आठ मंगलिकोंकी विचित्र रचना यह मंगलभक्तिचित्र नामक प्रथमभेद [१] आवर्त, (दक्षिणावर्त ) प्रत्यावर्त (वामावर्त), श्रेणी (समपंक्ति) प्रश्रेणी (उलटी पंक्ति), स्वस्तिक, सौवस्तिक, पुष्पमान ( लक्षणविशेष ) वर्धमान, मत्स्यांडक (मत्स्यके अंडे) मकरांडक ( मगरके अंडे ), जारमार ( मणिविशेष ) पुष्पावली, पद्मपत्र, सागरतरंग, वासंतीलता, और पद्मलता, इनकी विचित्र रचना-रूप दूसरा भेद [२] इहामृग (वरुभेड़िया), ऋषभ (बैल) अश्व, मनुष्य, मगर, पक्षी, सर्प, किन्नर, रुरु (हरिणभेद ), शरभ - अष्टापद, चमर (सुरागा य ) हस्ती, वनलता, पद्मलता इनकी विचित्र रचनारूप तीसरा भेद [ ३ ] एकतेोवक्र ( एक तरफ टेढा) एकतः खड्ग ( एक तरफ धारवाला ), एकत: चक्रवाल ( एक तरफ चक्राकार ) द्विधा चक्रवाल (दोनों तरफ चक्राकार) चक्रार्द्धचक्रवाल ऐसी रचना रूप चौथा भेद [४] चन्द्रावलि (चंद्रकी पंक्ति) सूर्यावलि ( सूर्यकी पंक्ति), वलयावली, तारावली, हंसावलि, एकावलि, मुक्तावलि, कनकावलि, रत्नावलि, यह आवलिप्रविभक्ति (पंक्तिरचना ) नामक पांचवां भेद [५] चंद्रोदयप्रविभक्ति (चंद्रोदयकी रचना ) सूर्योदयप्रविभक्ति ( सूर्योदयकी रचना ) यह
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