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करके आम आदिक अचित्त होजाय तो भी उसमें प्रायः मीठास स्वाद आदि रहता है, परन्तु नागरबेलके पानमें तो बिल्कुल नहीं रहता इससे वे सचित्त ही प्रायः खाते है । सचित्त नागरबेलके पानमें जलकी आर्द्रताआदि नित्य रहनेसे नीली ( लीलफूल ) तथा कुंथुआ आदि जीवोंकी उत्पत्ति होनेसे बहुत विराधना होती है, इसीलिये पापभीरू पुरुष रात्रिके समय तो उस (पान ) का उपयोग करते, ही नहीं और जो व्यवहार में लाते हैं, वे भी रात्रिमें खानेके पान दिनमें भली भांति देखकर रखे हुए ही वापरते हैं । ब्रह्मचारी ( चतुर्थव्रतधारी ) श्रावकने तो कामोत्तेजक होनेसे नागरबेलके पान अवश्य छोडना चाहिये । ये ( नागरबेलके पान ) प्रत्येक बनस्पति हैं अवश्य, पर प्रत्येक पान, फूल, फल इत्यादिक हरएक वनस्पतिमें उसकी निश्रासे रहे हुए असंख्यजीवकी विराधना होने का संभव है । कहा है कि
" जं भणिअं पज्जत्तगनिस्साए बुक्क पंतऽपज्जत्ता । जत्थेगो पज्जत्तो, तत्थ असंखा अपज्जत्ता ॥१॥"
पर्याप्तजीवकी निश्रासे अपर्याप्त जीवोंकी उत्पत्ति होती है । जहां एक पर्याप्त जीव, वहां असंख्य अपर्याप्त जीव जानो। वादर एकेन्द्रियोंके विषयमें यह कहा । सूक्ष्म में तो जहां एक अपर्याप्त, वहां उसकी निश्रासे असंख्यों पर्याप्त होते हैं। यह बात आचारांगमूत्रवृत्ति आदि ग्रंथों में कही है । इस भांति एक