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भावार्थ: - १ नाम, २ स्थापना, ३ द्रव्य तथा ४ भाव, ऐसे चार प्रकारका श्रावक होता है। जिसमें शास्त्र में कह अनुसार श्रावकके लक्षण नहीं अथवा जैसे कोई ईश्वरदास नाम धारण करे पर हो दरिद्रीका दास, वैसे ही जो केवल श्रावक ' नामसे जाना जाता है वह नाम श्रावक १ । चित्रित की हुई अथवा काष्ठ पाषाणादिककी जो श्रावककी मूर्ति हो वह स्थापना श्रावक २ | चन्द्रप्रद्योतन राजाकी आज्ञा से अभय कुमारको पकडने के लिये कपटपूर्वक श्राविकाका वेष करनेवाली गणिकाकी भांति अन्दरसे भावशून्य और बाहरसे श्रावकके कार्य करे, वह द्रव्यभावक ३ । जो भावसे श्रावककी धर्मक्रिया करने में तत्पर होवे, वह भावभावक ४ ।
केवल नामधारी, चित्रवत् अथवा जिसमें गायके लक्षण नहीं, वह गाय जैसे अपना काम नहीं कर सकती, वैसे ही १ नाम, २ स्थापना तथा ३ द्रव्यश्रावकभी अपना इष्ट धर्मकार्य नहीं कर सकता है, इसलिये यहां केवल भावश्रावकका अधिकार समझना चाहिये। भावभावकके तीन भेद हैं: - १ दर्शन श्रावक २ व्रतश्रावक ३ उत्तरगुणश्रावक
श्रेणिकादिककी भांति केवल सम्यक्त्वधारी हो, वह १ दर्शनश्रावक. सुरसुन्दरकुमारकी स्त्रियोंकी भांति सम्यक्त्वमूल पंच अणुव्रतका धारक हो वह २ व्रतश्रावक । सुरसुन्दरकुमारकी स्त्रियोंकी संक्षिप्तकथा इस प्रकार है: