________________
( १२१ )
भांति दोनोंनें 'यथा पिता तथा पुत्रः " इस कहावत को अपने अनुपम गुणोंसे सत्य कर दिखाया । शुकराजने अनुक्रमसे प्रसन्नतापूर्वक बडे पुत्र पद्माकरकुमारको राज्य व दूसरे पुत्र वायुसारको युवराज पद पर स्थापित किया और कर्मशत्रुको जीतने के निमित्त स्त्रियोंके साथ दीक्षा लेकर स्थिरतासे शत्रुंजयतीर्थको चला गया । पर्वत पर शुकुध्यानसे चढते ही उसे शीघ्र केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । महात्मा पुरुषोंकी लब्धि अद्भुतः होती है ! पश्चात् चिरकाल तक पृथ्वीपर विहार करता और भव्यजीवों के मोहान्धकारको दूर करता हुआ राजर्षि शुकराज दोनों स्त्रियोंके साथ मोक्षको गया ।
हे भव्यप्राणियो ! प्रथम भद्रकपन इत्यादि गुणोंसे क्रमशः उत्तम समकितकी प्राप्ति, पश्चात् उसका निर्वाह इत्यादि शुकराजको मिला हुआ अपूर्व फल श्रवण कर तुमभी उन गुणोंको उपार्जन करने का आदर पूर्वक उद्यम करो ।
इति भद्रकपनादिक ऊपर शुकराजकी कथा. श्रावकका स्वरूप. ( मूलगाथा )
नामाईचड़ भेओ,
सड्डो भावेण इत्थ अहिगारो ॥ तिविहो अ भावसड्डो,
दंसण - वय - उत्तरगुणेहिं ॥ ४ ॥