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सकती । उत्तम वैद्यकऔषधोपचारसे जैसे मनुष्य दुःसाध्य व्याधि से भी सात ही दिनमें मुक्त हो जाता है वैसे ही वायुके अनुकूल होनेसे पटिये के सहारे यह सात दिनमें किनारे पहुंच गया, और किनारे पर बसे हुए सारस्वत नगरमें इसने विश्राम किया। इस नगर में इसका संवरनामक मामा रहता था उसने इसे इस दशामें देख कर बहुत खेद प्रगट किया और बडे प्रेमसे अपने घर ले गया । समुद्रकी उष्णतासे इसके सब अवयव जल गये थे । संवरने उत्तमोत्तम औषधियों द्वारा एक मासमें इसे ठीक किया । एक समय इसने अपने मामासे सुवर्णकूल बंदरका हाल पूछा तो उसने इस तरह वर्णन किया कि - "यहां से अस्सी गांव परे सुवर्णकूल बंदर है । सुना है कि आज कल वहां किसी श्रेष्ठीके बडे २ जहाज आये हैं." यह सुनते ही इसके मनमें नटकी भांति हर्ष तथा रोष एक ही साथ उत्पन्न हुआ अर्थात् तेरा पता लग जानेसे तो हर्ष हुआ और तेरी कपट चेष्टा का स्मरण होनेसे रोष पैदा हुआ। इस प्रकार मनमें परस्पर विरुद्ध भाव धारण कर मामाकी आज्ञा लेकर यह यहां आया । पूर्व कर्मके अनुसार इस प्रकार जीवका संयोग वियोग होता है." इतना कह कर केवल भगवान शंखदत्त को भी पूर्व भवका सब सम्बंध कह सुनाया और कहा कि, "हे शंखदत्त ! पूर्व भत्रमें तूने इसे मारने की इच्छा की थी इसी कारण इसने इस भवमें तुझे मारने की इच्छा की। जिस तरह अपशब्दका बदला अपशब्द (गाली)