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________________ ४० भाषारहस्यप्रकरणे - स्त.१. गा.८ 0निश्छिद्रघटत्वस्य कार्यतावच्छेदकत्वाऽयोगः ० वाच्यम् घटे छिद्रपर्यायवत्तत्र भेदपर्यायोत्पादेऽपि द्रव्यान्तरोत्पादानभ्युपगमात्, विशिष्टोत्पादस्य च विशिष्टध्वंसप्रयोजकत्वेनाऽविशिष्टावस्थानाऽप्रतिपन्थित्वात्, अन्यथा द्वितीयादिसमयेष्ववस्थितस्यैव घटस्य द्वितीयादिसमये विशिष्टतयोत्पादेन ध्वंसव्यवहारप्रसङ्गात् । न च छिद्रघटोऽपि तद्धटभिन्न एवोत्पद्यत इति वाच्यम् दण्डाद्यव्यापारेण तदुत्पादस्याऽऽकस्मिकत्वात् । नाऽविशिष्टपरिपन्थित्वम्। अतो विशिष्टान्तरध्वंसकल्पना युक्ता न त्वविशिष्टध्वंसकल्पना। छिद्रघटोत्पादस्य निच्छिद्रघटपरिपन्थित्वेन निश्छिद्रघटध्वंसः सिध्यतु किं नश्छन्नम्, किन्तु घटसामान्यध्वंसो न सिध्यति अविरोधात् । अत्र निश्छिद्रपर्यायरूपेण घटध्वंसः सिध्यति न तु घटत्वेन घटध्वंस इति हार्दम्। विपक्षे बाधमाह अन्यथेति । विशिष्टोत्पादस्याऽविशिष्टपरिपन्थित्वाभ्युपगमे इत्यर्थः। उत्पत्तिसमये घटःप्रथमसमयविशिष्टः द्वितीयसमये च द्वितीयसमयविशिष्टः । अतो द्वितीयसमये द्वितीयसमयविशिष्टतयोत्पादेन त्वत्सिद्धान्ताद घटध्वंसव्यवहारप्रसङ्गो दुर्निवार इति भावः। नैयायिक :- "छिद्र घट उत्पन्न हुआ" उस व्यवहार से विशिष्ट घट की उत्पत्ति सिद्ध है मगर निश्छिद्र घट के रहते हुए छिद्र घट की उत्पत्ति शक्य नहीं है, क्योंकि छिद्र घट और निश्छिद्र घट परस्पर विरोधी हैं और छिद्ररहित घट का ध्वंस छिद्रघट का प्रयोजक है। अतः छिद्र घट की उत्पत्ति से निश्छिद्र घट के नाश का अनुमान होता है। वैसे ही भिन्न भाषाद्रव्य की उत्पत्ति अभिन्न भाषाद्रव्य के नाश के बिना नामुमकिन हैं, क्योंकि भिन्नभाषाद्रव्य और अभिन्न भाषाद्रव्य परस्पर विरुद्ध है और अभिन्न भाषाद्रव्य का ध्वंस भिन्न भाषाद्रव्य की उत्पत्ति में प्रयोजक है। अतः भिन्न भाषाद्रव्य की उत्पत्ति से अभिन्न भाषाद्रव्य का नाश अनुमान प्रमाण से सिद्ध होता है। * विशिष्टद्रव्यनाश सामान्य द्रव्य का विरोधी नहीं है - स्याद्वादी * स्याद्वादी :- वाह! आपको यह किसने पढ़ा दिया कि-अभिन्न भाषाद्रव्य का नाश होने पर भाषाद्रव्य का भी नाश हो जाता है? भिन्न भाषाद्रव्योत्पाद के पूर्व अभिन्नत्वरूप से भाषाद्रव्य का नाश भले हो मगर भाषात्वेन = भाषारूप से भाषा का नाश होता है, यह हमें मान्य नहीं हैं, क्योंकि भाषाद्रव्य अभिन्न भाषाद्रव्य का विरोधी नहीं हैं। आशय यह है कि भिन्न भाषाद्रव्य का अभिन्न भाषाद्रव्य के साथ विरोध है। अतः भिन्न भाषाद्रव्य की उत्पत्ति के समय अभिन्नत्वेन = अभिन्नरूप से भाषाद्रव्य का ध्वंस मानना युक्तियुक्त है, मगर भिन्नभाषाद्रव्य और भाषाद्रव्य में परस्पर विरोध नहीं है बल्कि पराऽपरभाव = व्याप्यव्यापकभाव है। अतः भिन्न भाषाद्रव्य की उत्पत्ति के समय भाषात्वेन = भाषारूप से भाषा का नाश मानना तर्कशून्य है। अतः भिन्न भाषाद्रव्य की उत्पत्ति के समय भी भाषात्वेन = भाषारुप से भाषासामान्य की अवस्थिति युक्तियुक्त ही है और यह 'उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्तं सत्' इस शास्त्रवचन से भी सिद्ध है। वैसे छिद्र घट की उत्पत्ति होने पर निश्छिद्ररूप से घट का नाश होता है न कि घटत्वरूप से भी, क्योंकि छिद्र घट को घट के साथ विरोध नहीं है। अतः छिद्र घट के जन्म से घटसामान्य के नाश की कल्पना करना मूर्खता ही है। नैयायिक :- छिद्र घट के उत्पाद से घटसामान्य के ध्वंस का अनुमान लगाया जाय तो क्या दोष है? प्रत्युत निश्छिद्रघट के ध्वंस का अनुमान करने में गौरव है। अतः छिद्र घट के उत्पाद से घटसामान्य का यानी घटत्वरूप से घट का ध्वंस लाघवसहकृत अनुमान प्रमाण से सिद्ध होता है। स्याद्वादी :- 'अन्यथा इत्यादि!' वाह! रस्सी जल गई पर बल न गया ! उस्ताद! आपका तर्क बाधित होने से उपादेय नहीं है। यदि छिद्र घट के उत्पाद से निश्छिद्ररूप से घटध्वंस का अनुमान करने के बजाय घटत्वरूप से घटध्वंस का आप अनुमान करेंगे तब आपत्ति यह आयेगी कि - जब घट उत्पन्न होता है तब उत्पत्तिकाल में घट प्रथमसमयविशिष्ट होता है और द्वितीयादि क्षण में द्वितीयादिसमयविशिष्ट होता है। घट उत्पत्तिकाल में तो द्वितीयादिक्षणविशिष्ट नहीं होता है, किन्तु द्वितीयादि क्षण में ही द्वितीयादिक्षणविशिष्ट होता है। अतः द्वितीयादि क्षण में द्वितीयादिक्षणविशिष्ट रूप से घट की उत्पत्ति सिद्ध होती है। आपके सिद्धांत को यदि मान्यता दी जाय तब तो द्वितीयादि क्षण में मुद्गरप्रहार आदि घटनाशक सामग्री का सन्निधान न होने पर भी 'धटो ध्वस्तः' 'यह घट नष्ट हुआ' ऐसा व्यवहार प्रमाणिक हो जायेगा, क्योंकि द्वितीयादि समयविशिष्टरूप से घट की उत्पत्ति होने पर घटत्वरूप से घट का ध्वंस आपकी मान्यता के अनुसार अनुमान प्रमाण से सिद्ध है। किन्तु ऐसा व्यवहार नहीं होता है। प्रसिद्ध प्रमाणिक व्यवहार का अपलाप करना आपके लिए उचित नहीं है। अतः मानना ही होगा कि विशिष्ट रूप से द्रव्य की उत्पत्ति होने पर
SR No.022196
Book TitleBhasha Rahasya
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
Author
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2003
Total Pages400
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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