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________________ * मिश्रभाषातृतीयभेदचतुर्भङ्गीप्रदर्शनम् * २२९ 'सा विगयमीसिया खलु, विगया भन्नंति मीसिया जत्थ । संखाइ पूरणत्थं, सद्धिमविगएहि अन्नेहिं । । ५९ ।। खल्विति निश्चये, सा भाषा विगतमिश्रिता भण्यते यत्र = यस्यां विगताः = प्रध्वस्ताः पदार्थाः, सङ्ख्यायाः पूरणार्थमन्यैः अविगतैः = अप्रध्वस्तैः सार्ध मिश्रिता भण्यन्ते । यथा-एकं ग्राममधिकृत्य यन्यूनाधिकेषु विगतेषु 'अद्य दश वृद्धा विगता' इत्युदाहरणम् त्पत्तिकतादात्म्यस्य संवादेन तदंशे प्रमाजनकत्वेनांऽऽशिकसत्यत्वस्याऽनपायान्न केवलं मृषात्वं किन्तु सत्यामृषात्वमिति । अत्र सत्यासत्यत्वं विषयभेदेन न विवक्षितं किन्त्वेकस्मिन्नेवांशभेदेन । तेन सङ्ख्यायां भ्रमजनकत्वादुत्पत्तौ च प्रमाजनकत्वात्प्रकृते सत्यासत्यत्वमिति निरस्तम्, उत्पन्नमिश्रितयोगार्थाऽघटनाच्च । अत एवात्र हि विवादः सङ्ख्यामाश्रित्य समाधानं त्वेतत्कालिकोत्पत्तिकाभेदांशसंवादेनेति आम्रान् पृष्टः कोविदारानाचष्टे भवानित्यपि प्रत्युक्तम्, धर्मिमुखेन समाधानप्रदाने सङ्ख्यायामप्यांशिकसंवादस्याऽऽक्षेपलभ्यत्वात् अनित्यत्वे सति व्याप्यवृत्तित्वे सति स्वरूपभिन्नसम्बन्धरूपस्य पर्याप्तिसम्बन्धस्य निवेशापेक्षया समवायस्याऽपृथग्भावसम्बन्धस्य वा प्रवेशे लाघवाच्च । न च सम्बन्धगौरवस्याऽदोषत्वमिति वाच्यम्, तस्याऽपि क्वचिद्दोषत्वात् । एतेन एकसत्त्वेऽपि द्वयं नास्तीतिवत् पञ्चसु जातेषु दश जाता न सन्तीति तस्य सर्वथैव मृषात्वम्, पर्याप्तिसम्बन्धेन दशसङ्ख्याया अद्य जातेषु बाधादित्यपि निरस्तम्, दृष्टान्तस्याऽपि वैषम्याच्च । एकसत्त्वेऽपि द्वयं नास्तीत्यत्रापि न द्वित्वावच्छिन्नाभावस्य विषयत्वमङ्गीक्रियते किन्तु द्वित्वेनोपस्थितयोः प्रत्येकं निषेधान्वयः । अतस्तस्याऽपि न सर्वथा सत्यत्वं किन्तु बाधाऽबाधाभ्यां मिश्रत्वमेवेत्यादिसूचनाथ दिक्पदप्रयोगः कृतः । अतिदिशति अन्यत्राऽपीति । विगतमिश्रितादिष्वपीति । । ५८ ।। अद्य दश वृद्धा विगता इति । विगताविगतविषयभेदेन दशसङ्ख्यायाः पञ्चसङ्ख्याद्वयात्मिकाया अंशयोरेव बाधाबाधाभ्यां भ्रमप्रमाजनकत्वमादाय सत्यासत्यत्वं द्रष्टव्यम् । यद्वा दशसु वृद्धेषु एतत्कालध्वस्ताभेदस्य अद्यकालीनध्वंसप्रतियोगित्वस्य वांऽशभेदेन बाधाबाधाभ्यां भ्रमप्रमाजनकत्वमादाय सत्यामृषात्वं भावनीयम् । । ५९ । । समाधान :- दशसु. इति। आपकी यह बात ठीक नहीं है, क्योंकि दश बालकों में से पाँच बालकों में अद्यकालीन उत्पत्तिविशिष्ट का तादात्म्य अबाधित होने से आंशिक संवाद उपलब्ध होता है। अतः यह भाषा सर्वथा मृषा नहीं है। यदि दश बालकों में से एक भी बालक में अद्यकालीन उत्पत्तिविशिष्ट का तादात्म्य भी बाधित होता, तब तो उसे सर्वथा मृषा कहना उचित होता । मगर ऐसा है नहीं । यहाँ दश बालकों में से पाँच बालको में अद्यकालीन उत्पत्तिविशिष्ट का अभेद अबाधित है और शेष पाँच बालकों में वह बाधित है। अतः आंशिक संवाद और विसंवाद की अपेक्षा यह भाषा सत्यामृषा ही है यह सिद्ध होता है। इस संबंध में अधिक विचार भी किया जा सकता है - इसकी सूचना देने के लिए विवरणकार ने यहाँ दिग् शब्द का प्रयोग किया है। इस तरह विगतमिश्रित आदि भाषा में भी पाठक स्वयं विचार करे ऐसा कह कर उत्पन्नमिश्रित भाषा के संबंधी अपने वक्तव्य को विवरणकार समाप्त करते हैं । । ५८ ।। - उत्पन्नमिश्रित भाषा कही गई। अब ५९ वीं गाथा से प्रकरणकार मिश्रभाषा के द्वितीय भेद विगतमिश्रित भाषा को, जो कि क्रमप्राप्त है, बताते हैं । गाथार्थ :- जिस भाषा में विगत भाव अविगत भाव के साथ संख्या पूर्ति के लिए मिश्रित किये जाते हैं वह भाषा विगतमिश्रित कही जाती है । ५९ । * विगतमिश्रित भाषा २/३ * विवरणार्थ :- जिन पदार्थों का ध्वंस हो गया हैं वे अनष्ट अन्य पदार्थों के साथ प्रतिपादित संख्या की पूर्ति के लिए मिश्रित बना कर जिस भाषा में बताये जाते हैं वह भाषा विगतमिश्रित भाषा कही जाती है। यह बात उदाहरण से स्पष्ट हो जायेगी। जैसे कि किसी गाँव में पाँच या पंदर वृद्ध पुरुष दिवंगत हो जाने पर 'आज यहाँ दश वृद्ध मर गये है' ऐसा वचन विगतमिश्रित कहा जाता १. सा विगतमिश्रिता खलु, विगता भण्यन्ते मिश्रिता यत्र । संख्यायाः पूरणार्थं साधर्म विगतैरन्यैः।।५९।।
SR No.022196
Book TitleBhasha Rahasya
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
Author
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2003
Total Pages400
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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