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________________ ९२ भाषारहस्यप्रकरणे - स्त.१.गा.२० ० पारिभाषिकमपि स्त्रीत्वादिकमर्थनिष्ठम ० नन्वेवं चातुर्विध्यं कल्पितमेवेत्याशङ्कायामाह एवं चउबिहत्तं पकप्पियं होज्ज जइ मई एसा। सा ण जओ ववहाराणुगयं वत्थु पि सुयसिद्धं ।।२०।। _ "एवं निश्चयनयस्य पारमार्थिकत्वे चतुर्विधत्वं = चतुष्प्रकारत्वं प्रकल्पितं = तुच्छं वासनामात्रसमुत्थप्ररूपणत्वात्, "यदि एषा मतिर्भवेत् सा न, यतो व्यवहारानुगतमपि वस्तु श्रुतसिद्धम् । तथाहि-खट्वा-घट-कुड्यादिषु स्त्रीत्व-पुंस्त्व-क्लीबत्वानि न प्रसिद्धानीति न तुच्छानि, लिङ्गानुशासननियन्त्रितसङ्केतविशेषविषयशब्दाभिधेयत्वरूपस्त्रीत्वादीनामपि वास्तवत्वात्, स्त्र्यादिपदानां नानार्थकत्वात् । न च पारिभाषिकं स्त्रीत्वादि शब्दनिष्ठमेवेति वाच्यम्, स्त्रीत्वादियोगिनि वस्तुन्येवेयमित्यादिव्यवहारात । तदिदमुक्तं शकट___ शङ्कते न चेति । शब्दनिष्ठमेवेति । एवकारेणार्थनिष्ठत्वव्यवच्छेदः कृतः। शङ्काकर्तुरयमाशयःस्त्र्यादिवेदविपाकोदयरूपस्त्रीत्वादीनामस्त्वर्थनिष्ठत्वमपारिभाषिकत्वात्, शब्दे बाधाच्च किन्तु पारिभाषिकं स्त्रीत्वादि तु शब्दमात्रनिष्ठं पारिभाषिकत्वात्। तथा च वस्तुवाचकताविशेषरूपपारिभाषिकस्त्रीत्वादि शब्दनिष्ठं वक्तुं युज्यते। तेन नैकत्र लिङ्गत्रयादिविरोधप्रसङ्ग इति। __ अस्याऽश्रद्धेयत्वे बीजमाह- 'स्त्रीत्वादियोगिनि वस्तुन्येव 'इयमि'त्यादिव्यवहारात्। न च तादृशव्यवहारो वस्तुन्येवाऽस्तु, माऽस्तु शब्दे किन्तु ततोऽपि कथं तत्रैव स्त्रीत्वादिसिद्धिरिति वाच्यम्, व्यवहारस्य व्यवहर्तव्यज्ञानाधीनत्वात, ज्ञाने च सर्वैः स्त्रीत्वादीनां बाह्यार्थधर्मतयैव प्रतीयमानत्वाद्वस्तुन्येव स्त्रीत्वादिसिद्धिः। एतेन शब्दनिष्ठपारिभाषिकस्त्रीत्वाद्यपेक्षया वस्तुनीयमित्यादिव्यवहाराभ्युपगमकल्पना परास्ता क्लिष्टकल्पनायासमात्रत्वात् वैयधिकरण्येन शब्दवाच्य 'इयमि'त्यादिव्यवहारानुपपत्तेः। न हि शब्दनिष्ठैकत्वाद्यपेक्षया शब्दवाच्ये 'अयमेकः' इत्यादिव्यवहारो दृश्यते। नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि खाट आदि में स्त्रीत्व, आदि काल्पनिक है - तुच्छ है। किन्तु उनमें भी स्त्रीत्वादि वास्तविक है। यद्यपि वहाँ स्त्रीत्वादि स्त्रीआदि वेदमोहनीय विपाकोदय स्वरूप में विद्यमान नहीं है; किन्तु शब्दविशेषवाच्यतास्वरूप है; जो वास्तविक है, काल्पनिक नहीं। शब्दविशेष का अर्थ है लिंगानुशासन से नियंत्रित संकेतविशेष विषयक शब्द । यहाँ यह शंका करना कि "शब्दविशेषवाच्यतारूप स्त्रीत्वादि वास्तविक कैसे हो सकते हैं?" - ठीक नहीं है, क्योंकि स्त्री आदि शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। कहीं पर स्त्रीवेदोदय आदिरूप स्त्रीत्वादि तो कहीं पर शब्दविशेषवाच्यतास्वरूप स्त्रीत्व आदि। अतः खाट आदि में स्त्रीत्वादि वास्तविक ही है, काल्पनिक नहीं। शंका :- 'नच पारि' इति । जहाँ तक लौकिक व्यवहार को लक्ष्य में लिया जाए तो हम कह सकते हैं कि - स्त्रीपना योनि आदि वैशिष्ट्यरूप ही है और सूक्ष्मदृष्टि से विचार किया जाए तो योनि आदि से उपलक्षित स्त्रीवेदोदय आदिरूप स्त्रीत्व-स्त्रीपना है, जो कि शब्द से वाच्य वस्तु में रहता है। मगर आप प्रसिद्ध स्त्रीत्व आदि को छोड कर लोक व्यवहार में अप्रसिद्ध शब्दविशेषवाच्यतारूप स्त्रीत्व आदि को बता रहे हैं, जो कि पारिभाषिक ही है। अतः उनको शब्द में मानना ही युक्त है। अर्थात् पारिभाषिक स्त्रीत्व शब्दविशेषवाच्यतास्वरूप नहीं किन्तु अर्थवाचकताविशेषस्वरूप मानना ही युक्त है जो शब्द में रहेगा। ऐसा मानने पर विषयविभाग भी व्यवस्थित हो जाएगा कि - अपारिभाषिक स्त्रीत्व आदि वस्तु अर्थ में रहेंगे और पारिभाषिक स्त्रीत्वादि शब्दविशेष में रहेंगे। ___ समाधान :- स्त्रीत्वादियोगि. इति। हमने घाट-घाट का पानी पिया है - यह आप नहीं जानते हैं। अतएव ऐसी तथ्यहीन बातें कह कर हमें परेशान कर रहे हैं। सुनिये, "यह खाट है," "यह घट है" इत्यादि व्यवहार बाह्य वस्तु में ही होता है न कि शब्द में। इसीसे सिद्ध होता है कि - स्त्रीत्वादि बाह्य वस्तु में ही है न कि शब्द में। यदि शब्द में स्त्रीत्वादि होता तो शब्द में 'यह सोने की खाट है' 'यह पानी पीने का घट है' इत्यादि व्यवहार क्यों नहीं होता? इससे सिद्ध होता है कि पारिभाषिक स्त्रीत्वादि शब्दविशेषवाच्यता स्वरूप ही है और वह बाह्य अर्थ में ही रहता है, न कि शब्द में। यदि बाह्य वस्तु में पारिभाषिक स्त्रीत्व-पुंस्त्व आदि न हो तब 'यह घट हलका है' इस प्रयोग की तरह 'यह घट हलकी है' इत्यादि प्रयोग भी होना चाहिए, क्योंकि घट में न १ 'अप्पडिहयपच्चक्खाय' इति कप्रतौ। मुद्रितप्रतौ प्रज्ञापनासूत्रे च यः पाठः सोऽस्माभिर्दत्तः। २ एवं चतुविर्धत्वं प्रकल्पितं भवेद्यदि मतिरेषा। सा न यतो व्यवहारानुगतं वस्त्वपि श्रुतसिद्धम् ।।२०।।
SR No.022196
Book TitleBhasha Rahasya
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
Author
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year2003
Total Pages400
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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