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________________ नल दमयन्ती की कथा सम्यक्त्व प्रकरणम् देखकर नल ने कहा-हे सुभट! तुम जीत गये। तुमने जो क्षमा धारण की है, वह मैं ग्रहण करने में समर्थ नहीं हैं। इस प्रकार कदम्ब राजर्षि की स्तुति करके उनके सत्त्व से रंजित होकर उनके पुत्र जयशक्ति को उन्हीं के राज्य पर स्थापित किया। संपूर्ण समर्थ राजाओं के द्वारा विचार करके अर्ध भरत के साम्राज्य पर नल का अभिषेक किया गया। अग्नि के समान औजवाला नल कोशल में रहता हुआ सर्व धन द्वारा मंगल करके सभी राजाओं द्वारा पूजा गया। जिस प्रकार नल एक पत्नी दमयन्ती महासती का स्वामी था, उसी प्रकार सार्वभौमिक पृथ्वी को भी चिरकाल तक नल रूपी राजा द्वारा भोगा गया। नल का भाई कूबर कुलाङ्गार था। वह नल के राज्य पर पदे हुए शाकिनी मन्त्र की तरह छल भरी नजर रखता था। राजा नल के अत्यन्त गुणी होने पर भी उसमें चन्द्रमा के कलंक की तरह तथा समुद्र के खारेपन की तरह द्यूतव्यसन नामका दुर्गुण था। नल का राज्य पाने की जिज्ञासा से कूबर नल के साथ मायापूर्वक द्यूत क्रीड़ा करने लगा। दोनों के नित्य जुआ खेलने में जीत की स्थिति डमरु की रस्सी की तरह, कौएँ के अक्षि-गोलक की तरह अथवा दोलायमान झूले की तरह हो जाती थी। एक दिन भाग्य के दोष से द्यूत कर्म में प्रवीण होते हुए भी नल कूबर को जीतने में सफल न हो सका। पाशज्ञ होने पर भी नल द्वारा चिन्तित पाशे नहीं गिरते थे। कूबर बार-बार विजित हो रहा था। तब नल जुए में शनै-शनै ग्राम, नगर आदि को हारता हुआ ग्रीष्म काल में जलविहीन सरोवर की तरह हो गया। द्यूत में हार जाने पर नल का अन्धकारमय विनाश हुआ। और क्षण-क्षण में जीतनेवाले कूबर का अभ्युदय हुआ। ___ नल के अनुरागी लोगों के द्वारा हाहाकार किया जाने लगा। उस हाहाकार को सुनकर दमयन्ती भी आकुल हो गयी। उसने कहा-मैं आपसे कुछ याचना करती हूँ। मुझे प्रार्थित प्रदान करें। हे देव! यह दैव का जाल नहीं, बल्कि पाशों के कारण बना हुआ दुर्भाग्य है। अपने प्रियअनुज कूबर को स्वेच्छा से राज्य दे देना ही श्रेष्ठ है। अन्यथा उसके हटात् राज्य छीन लेने से, अपनी अकीर्ति को न करें। जो राज्य नल ने युद्ध के द्वारा जीता, उसे पाशों से हार दिया व चोरों आदि के द्वारा हरण की गयी वस्तु की तरह यही मेरे दुःख का कारण है। नल ने मत्त हाथी की तरह उसके वचनों को नहीं सुना। तब दमयन्ती द्वारा अमात्यों को नल को जुआ खेलने में रोकने के लिए कहा गया। जुए से हटाने के लिए अत्यधिक बार कहे जाने पर भी उनके वचनों को नल ने नहीं माना। क्योंकि औषधं कुरुते कर्म सन्निपातवतः किमु। कर्मरूपी सन्निपात के रोगी को दवा असर नहीं करती। जुए में अंधे होकर नल ने अखंडित विक्रम वाला होते हुए भी त्रिखण्ड के आधिपत्य को निगल लिया। अपनी पत्नी के साथ, शरीर के आभरण आदि उतारकर केवल देह मात्र से ही रह गया। तब कूबर ने नल को कहा-मेरा राज्य जल्दी छोड़ो। पिता के द्वारा प्रदत्त यह राज्य तुमने पासों के द्वारा मुझे दे दिया है। जीत प्राप्त करने के स्वप्न मत देखो। क्योंकि सत्त्ववान नर के कर में लक्ष्मी होती है-इस प्रकार कहकर वस्त्र रूपी वैभव से तन को ढककर नल चलने को उद्धत हुआ। नल का अनुसरण करती हुई दमयन्ती को देखकर कूबर ने कहा-तुम जुए में मेरे द्वारा जीत ली गयी हो। अतः मत जाओ। मेरे अन्तःपुर में प्रवेश करो। कूबर के इस तरह कहने पर अमात्यों ने कहा-महासती दमयन्ती कभी भी पर नर की छाया तक का स्पर्श नहीं करती। इसे अंतःपुर मत ले जाओ, क्योंकि यह तुम्हारी माता के समान है। कहा भी गया है पितृतुल्यो बृहद्बन्धुः। बड़ा भाई -पिता तुल्य होता है। 45
SR No.022169
Book TitleSamyaktva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata N Surana
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages382
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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