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________________ नल दमयन्ती की कथा सम्यक्त्व प्रकरणम् भी अपने स्थान को जाने की उत्कण्ठा से नैषधि-नल ने अपने प्रयाण को नहीं रोका। मूर्च्छित की तरह उसकी सेना मार्ग में अन्धों की तरह स्खलित होती हुई गिरती हुई जाती देखकर नल ने अपनी प्रिया से कहा-क्षण भर के लिए जागो, देवी! अंधकार सेना को बाधित कर रहा है। तुम्हारे भाल में रहे हुए तिलक से रात्रि में भी अरुणोदय हो जायगा। आदर्श नारी की तरह उठकर देवी ने अपने हाथ से मस्तक को रगड़ा, तुरन्त तिलक मार्ग के अंधेरे को नष्ट करनेवाला प्रभासूर्य साबित हुआ। तिलक रूपी सूर्य के प्रताप से अंधकार रूपी कर्दम को शोषण किये जाने से संपूर्ण सैन्यबल बिना किसी बाधा के आगे जाने के लिए समर्थ हुआ। कोशल को नजदीक पाकर नल ने अपनी प्रिया से कहा-देवी! जिनचैत्य रूपी मोतियों से भूषित यह मेरी नगरी है। पद्ममाला के समान चैत्यों की कतार देखकर दमयन्ती द्विगुणित हर्ष से भर गयी। उसने कहा-देव! मैं धन्य हूँ कि मेरे आप पति हैं। नित्य ही ये चैत्य मेरी अर्चना का विषय होंगे। ____ऊंचे-ऊंचे तोरणों से आबद्ध उच्च पताका शोभित हो रही थी। वधू-वर के आगमन में मानो पृथ्वी श्रृंगारमय हो रही थी। दमयन्ती से विवाह हुआ मानो सुधासेक से सौभाग्य-पादप आर्द्र हुआ हो। प्रस्तुत मंगल से शुभ दिन में नल ने वहाँ प्रवेश किया। प्रिया सहित माता-पिता को प्रणाम किया। दोनों ने प्रीतिपूर्वक शुभाशीषों से उनका अभिनन्दन किया। वे दोनों नवविवाहित पति-पत्नी आनन्दपूर्वक रहने लगे। कभी जल क्रीड़ा के द्वारा परम सुख को अनुभूत करते। कभी झूला झूलते हुए क्रीड़ा करते। कभी उद्यान में जाकर पुष्प श्रृंगार करते। कभी पासों के द्वारा चौपड़ खेलने का कौतुक करते। कभी दिव्य काव्यों द्वारा एक दूसरे का वर्णन करते। कभी एकान्त स्थान में ये दोनों एक दूसरे की प्रशंसा करते हुए प्रशंसित नृत्य करते। कभी दमयन्ती के द्वारा नृत्य किये जाने पर नल स्वयं वाद्य बजाता। इस प्रकार दोनों ने एक दूसरे के साथ नयी-नयी लीलायें करते हुए कितना ही काल व्यतीत कर दिया। __अन्य किसी दिन निषध भूपति ने अपने राज्य पर नल को प्रतिष्ठितकर एवं कूबर को युवराज पद देकर स्वयं ने संयम ग्रहण किया। नल शत्रुओं के लिए अग्नि के समान असह्य प्रतापवाला था। प्रजा के नयनों के चाँद की तरह उसने राज्य का पालन किया। दिशापतियों को भी जो दर्प से मानते हैं, तुच्छता से नहीं। उनके द्वारा भी वीर माना जाता हुआ कोई भी नल के अनुशासन का उल्लंघन करने में समर्थ नहीं था। - किसी दिन नल ने अमात्य आदि कुछ वृद्धों को पूछा कि क्या मुझे पिता द्वारा उपार्जित राज्य पर ही शासन करना चाहिए या उनसे भी ज्यादा? उन्होंने कहा कि भारत वर्ष को (तीन अंश से कुछ कम) तुम्हारे पिता ने भोगा। अगर तुम संपूर्ण भारत पर राज्य करो, तो पिता के योग्य पुत्र कहे जाओगे। यहाँ से दो सौ योजन की दर पर तक्षशीलानगरी है। वहाँ का राजा कदम्ब आपकी आज्ञा को नहीं मानता है। रूपी चन्द्रमा से आपकी यश किरणें चमक रही हैं. पर यह एक अहंकारी आपकी छवि में लाञ्छन की तरह है। आपके द्वारा इसकी उपेक्षा किये जाने पर वह छोटे से रोग की तरह उपचय को प्राप्त होकर बढ़ता हुआ असाध्य रोग की तरह हो जायगा। उसका हनन करने के लिए, परास्त करने के लिए अपने मन को तैयार कीजिए। कहा भी गया है प्रभास्फोटेऽपि सूर्यस्य तमः किं न विलीयते। सूर्य की प्रभा का स्फुटन होने पर अंधकार विलीन क्यों नहीं होगा? होगा ही। लेकिन पहले दूत के मुख के द्वारा उसको अनुशासित करना चाहिए। संग्राम से अथवा प्रणाम से यह निर्णय शत्रु करे-यह अच्छा है। नल राजा ने वाणी-कुशल दूत को बुलाकर उसे सीखा पढ़ाकर उस कदम्ब राजा के पास भेजा। दूत ने
SR No.022169
Book TitleSamyaktva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata N Surana
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages382
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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