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________________ आचार्य के छत्तीस गुण हे देवदत्त ! आदि। धर्म - दान, शील, तप व भावना युक्त। ये विकथा आदि नौ के ही चार-चार भेद होने से ३६ भेद होते हैं। ये ३६ गुण भी आचार्य के होते हैं । यहाँ पर स्थित कल्प आदि के यथा संभव सम्यग् आसेवन के परिज्ञान रूप प्ररूपणा के परिहार के आचार्य के गुणत्व को जानना चाहिए ॥ ३२ ॥ १४६ ॥ सम्यक्त्व प्रकरणम् तथा - पंचम ३६ गुण पंच महव्ययजुत्तो पंचविहायारपालणुजुत्तो । पंचसमिओ तिगुत्तो छत्तीस गुणो गुरु होई ॥३३॥ (१४७) पाँच महाव्रत से युक्त, पाँच प्रकार के आचार के पालन में युक्त, पाँच समिति - तीन गुप्ति - इन अठारह गुणो को स्वयं करना तथा दूसरों से करवाना - इस प्रकार छत्तीस गुणवाले गुरु होते हैं ।। ३३ । । १४७ ।। अब अनुयोग-प्रवर्त्तन को आश्रित करके गुरु के छत्तीस गुणों को गाथा - चतुष्ट्य से कहते हैं । छट्ठे ३६ गुणदेसकुल जाइरुवी संघयणी धीजुओ अणासंसी । अविकत्थणो अमाई थिरपरिवाडी गहिय वक्को ॥३४॥ (१४८) जियपरिसो जियनिद्दो मज्झत्यो देशकालभावन्नू । आसन्नलद्धपइभो नाणाविहदेसभासन्नू ॥ ३५ ॥ (१४९) पंचविहे आयारे जुत्तो सुत्तत्थतदुभयविहिन्नू । आहारणहेउकारणनयनिउणो गाहणाकुसलो ॥३६॥ (१५० ) ससमयपरसमयविऊ गंभीरो दित्तिमं सिरो सोमो । गुणसयकलिओ जुत्तो पवयणसारं परिकहेउं ॥ ३७॥ (१५१) देश, कुल, जाति, रूप आदि से जो अतिशायी होते है, ऐसे गुरु के उन अतिशयों को बताया जाता है - १. देश - मध्यदेश (आर्यदेश) रूपी जन्मभूमि हो । २. उनका पैतृक कुल इक्ष्वाकु आदि हो । ३. जाति - मातृपक्ष उन्नत हो । ४. रूप - अंग- उपांग आदि संपूर्ण हो । ५. संघयणी - विशिष्ट संहनन के धारी हो । वाचना आदि में थकान का अनुभव न हो । ६. धिजूओ धृति युक्त हो अर्थात् धैर्यशाली हो । ७. अणासंसी - श्रोताओं आदि से वस्त्रादि के आकांक्षी न हो। ८. अविकत्थणो - बहुत ज्यादा बोलनेवाला न हो अथवा आत्म प्रशंसा से युक्त न हो । ९. अमाई - माया रहित हो । १०. थिर परिवाडी - स्थिर अर्थात् निश्चल परिपाटी द्वारा सूत्रार्थ की वाचना हो । ११. गहियवक्को - जिसके द्वारा वाक्य अवधारण किया जाता हो अथवा जिनके वचन आदेय हो । १२. जियपरिसो- परिषद को जीतनेवाला हो। १३. जियनिद्दो- निद्रा को जीतनेवाला हो । १४. मज्झत्थो - शिष्यों में समानचित्त वाला हो अर्थात् मध्यस्थ हो । १५. देशकाल भावन्नू - देश से क्षेत्र - भावित आदि हो, काल से सुभिक्ष आदि का तथा भाव से क्षायोपशमिक 243
SR No.022169
Book TitleSamyaktva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata N Surana
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages382
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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