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उपा. श्री यशोविजयजी विरचित
तहत्ति करतां | ३| जातां - आवसिया |४| आवतां - निसीहिया |५| एकवार पूछतां - आपूछणा | ६ | वारंवार पूछतां पडिपूछना || पूर्व गृहीत अशनादिकइ निमंत्रण करतां छंदणा |८| पहलां ज बहरवा निमंत्रणा साधुन असनादिक निमंत्रइ तिहां जाता |९| ज्ञान-दर्शन- चारित्रादि करइ अर्थे गच्छादिनिश्रा तेउपसंपदा || १० ॥
एतले सामाचारी रथ सम्पूर्णः ॥ छ ॥ ९ ॥ [ इति नवमः सामाचारीरथगाथार्थसंक्षेप: ]
हवें सज्झाय रथ विवरण कीजइ छइ - गाहा ॥
नारुई देहविवेगी अड्ड विवजिअ सुवायणिओ । गुरु-वेयावच्चकरो, सुज्झइ आलोइउं कोइ ॥ १ ॥ [ १० ]
अर्थः- नाणरुई -कहितां ज्ञानन विषे रुचि छे तेहनी एहवो, देहविवेगी क० देहविवेकवंत छे जेह एहवो, अट्ट विवज्जिअ क० आर्त्तध्यान अने रोद्रध्यान करी विवर्जित रहित छ', सुवायणिओ कहतां भली छह वाचना जेहनइ', गुरुवे० कहतां गुरुनी वेयावच्चनो करणहार छई, सुज्झइ० क० शुद्ध थाइ जीव आलोयण प्रायच्छित्त करीनैं कोइक ॥ १ ॥
सुब्भइ आलोइउ ए ठामइ' सुब्भ पडिकमणओ कोई इत्यादिक १० पद परावृतिं १० गाथा थाइ । ए गुरुनी वेयावच्च करो ए पद अणमुकतां वायग सुस्सुम करो इत्यादि १० पदस्युं गुणतां १०० गाथाथाइ । ते सुवायणिओ ए पद अण छांडतां तिहां सुपुच्छणिओ इत्यादिक ५ पद फेरवतां ५०० गाथा थाइ । ते अदृ विवज्जिय ए पद साथि, इम रुद्द विवज्जिय इत्यादिक ४ पदस्युं गुणतां २ हजार (२०००) ते देहविवेगी ए पद साथ