SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अढारसहस शीलांग रथ पृथवीकायनो आरंभ प्रतिं न करई ए कहि ॥ १ ॥ इम आउकायारंभ क० अपकायना आरंभ प्रतिं न करई ॥ २ ॥ ते० कहतां तेउकायना आरंभ प्रतिं न करई ॥ ३ ॥ वा० क. वायुकायना आरंभ प्रति न करई ॥ ४ ॥ व० क० वनस्पतिकायना आरंभ प्रति न करई ॥ ५ ॥ बेई० क० बेइंद्रिय आरंभ प्रति न करई ॥६॥ ते०क० तेइंद्रीयना आरंभ प्रति न करइ ॥७॥ चउ० क० चउरिंद्रीना आरंभादिक प्रतिं न करें ॥ ८ ॥ पं० क० पंचेद्रीयना आरंभ प्रतिं न करें ॥ ९॥ अजीवकायारंभ कहेतां अजीवकाय जे वस्त्र-पात्र-पुस्तकादिक. तेहनो जे अजयणाईलेतां मूकतां आरंभ ते प्रतिं न करई ।। १० ॥ 'निन्जिय सोईदी नई ठामइ. निजियच खुंदी' इत्यादिक पाठ कहतां ५०० गाथा होई । ते निजय आहारसन्न नई ठामई, निजिअ भयसन्न इत्यादिक कहतां २ हजार (२०००) गाथा थाई। इद्रिय ५ संज्ञा ४ नो अर्थ प्रकट छई। ए २ हजार (२०००) गाथा, मनई न करई, ए पद अण. मुकतां आवी। इम वयसा क० वचनई करें ते पदें २ हजार (२०००), तणुणा कहतां कायाइ न करें, पदइ पणि २ हजार (२०००) मिली छह हजार (६०००) थाइ' । जेनो करति ए पदई एनी रीति (६०००) छहजार गाथा थाई। इम जे कारंति न मणसा इत्यादि ६ हजार (६०००) थाई। कारंति न कहतां न करावह इम.जे णुमन्नंति न मणसा इत्यादि ६ हजार (६०००) थाई ।
SR No.022149
Book TitlePanchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Yashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1980
Total Pages140
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy