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________________ १०८ बोल संग्रह लौकिक. पणि भारे दीसई छई। योगबिदुमा भिन्नग्रन्थिनुं मिथ्यात्व हलुउं कहिउं छइं अभिन्नग्रंथ- भारे कहिई छई ॥३१॥ ( ३२ ) . अनुमोदना तथा प्रशंसा ए २ भिन्न कहिउं एहवं लिख्यं छइं ते न घटइं, जे माटइं पंचाशकवृत्ति प्रमुख ग्रंथई प्रमोदप्रशंसादिलक्षण अनुमोदना कहि छइं ॥ ३२॥ ( ३३ ) मिथ्यादृष्टिना दयादिक गुण पणि न अनुमोदवा एह इछई ते न घटइं__ जे माटइं परसंबंधिया पणि दानरुचिपणा प्रमुख सामान्य धर्मना गुण अनुमोदवा योग्य कहिया छइं, आराधनापताकादिक ग्रंथिं तथा साधारण गुण प्रशंसा ए धर्मबिदु सूत्रमा पणि लोक लोकोत्तर साधारण गुणनी प्रशंसा करवी कही छइं ॥ ३३ ॥ ( ३४ ) मिथ्यात्वीना दयादिक गुण प्रशंसीइं पगि अनुमोदिइं नहीं एहवं कहई छई ते मायानुं वचन जे माटइं खरी प्रशंसाइं अनुमोदना ज आवई, अनई खोटी प्रशंसानो तो विधि न हुई ॥ ३४ ॥ ( ३५ ) ___सम्यग्दृष्टि ज क्रियावादी हुई एहवं कहइ छइ ते न घटइं, जे माटइं एक पुद्गलपरावर्त शेष संसार क्रियारुचि क्रियावादी कहिओ छइं दशाचूर्णि प्रमुख ग्रंथइं ॥ ३५ ॥ - मिथ्यात्वीनइं दयादिक गुणइं करी पणि सकामनिर्जरा न हुई एहवं लिख्यं छइं ते न घटइं
SR No.022149
Book TitlePanchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Yashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1980
Total Pages140
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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