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________________ कायस्थितिस्तवन एक शरीर अनंतनई रे वसवं ते संकटवास. सो.२ जनम मरण मई पूरिया रे सास उसास इक मांहि, सतर अधिक खुड्डगभवे रे वीसामो नहि क्याहि सो.. अव्यवहारिथी निकली रे पामो रासि व्यवहार, तिरिय असन्नि एगिदिया जी वसइ क्लीय प्रकार. सो." उत्कृष्टा पुद्गल भमिउंजी आवलि भाग असंख, सूक्ष्मपणइ उसप्पिणी जी लोकपएस असंख. सो.५ प्रत्येकइं पणि सुहुममांजी तिम ज अवंतर संख, बायर वणसईजी - अंगुल भाग असंख. सो० ॥ परावर्त पुद्गल अढीजी मई जु निगोदई कीष, . बायर चउक निगोअमां जी वण पत्तय प्रसिद्ध. _सो० ७ हूं भमिओ सागरतणे जी, सत्तरि कोडाकोडि, संख्यात वास सहस वली जी, बि ति चरिंद जोडि. सो० ८ पज बायर एगिदिइं जी, भू जल अनिल परित्त, तिम ज कायस्थिति मई करी जी, भवसंकलत विचित्त. सो० ९ बायर पज्ज अगनि वली जी, बि ति चरिदी मांहिं, दिवस वरस दिन मास ते जी, भमत निरंतर त्यांहिं. सो० १० संख्यात वरस अधिक त्रसई जी, सहस सागर वलि दोइ, पंचेंद्रियमांहि अमरनुं जी, सहस अधिक एक होइ. सो०११ अयर तितीस सुर नारको जी, जघन्य सहस दस वास, सय पुहुत्त नर सन्नीमा जी, अयर अधिक सुप्रकास. सो० १२
SR No.022149
Book TitlePanchgranthi 108 Bol Sangraha Shraddhanajalpattak Adharsahasshilangrath Kupdrushtantvishadikaran Kaysthitistavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Yashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1980
Total Pages140
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size7 MB
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