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नो संगम विचार तां शुं कौतुक न करे ? अर्थात् कौतुक करेज.
विवेचन- ग्रहियां एक एवी शंका थाय छे के प्रापणे शरीरने देखी शकिये छीये, परन्तु जीव तो देखवामां प्रावतो नथी. तथा जीव रूपी छे, अने शरीर अने तेना आश्रित शरीर नी बधी क्रियाओ, स्निग्ध रुक्ष विगेरे शरीरना बधा धर्मो रूपी छे. ग्ररूपी नो स्वभाव अलग छे अने रूपी नो स्वाव अलग छे तो अरूपी ने रूपी बत्र वस्तुप्रो नुं मिलन विचारतां शु कौतुक न करे ? अर्थात् ज़रूर करेज. तेनो प्रत्युत्तर आगल नी गाथामां बतावाय छे.
मूलम्
कर्पूरग्वि दिकसुष्टुदुष्टु-वस्तुत्थगन्ध। गगनं श्रिता यथा । तिष्ठन्तियावत् स्थिति तद्वदेवमोः कर्माणि जीवपरिवृत्य सन्ति गाथार्थ - कपूर ने हिंग आदि सारी अने खराब वस्तुप्रो ना गंधो जेम प्रकाश ने प्राश्रयि ने रहेला छे, तेम कर्मों परण जीव ने ग्राश्रयी रहेलां छे. विवेचन- ग्ररूपी अने रूपी पदार्थो नो संयोग केम थाय ? प्रावी शंका समाधान करतां ग्रंथकार श्री जणावे छे के कर्पूर आदि सुगंधी पदार्थो ना सुगंधो अने हिंग प्रादि दुर्गंधी पदार्थों ना दुर्गधी रूपी होवा छतां