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श्रत ए पाँचे इन्द्रिय नो विषय छे अने पदार्थ नु चिन्त्वन करवु ते मन नो विषय छे. श्रुतज्ञानी पांचे इन्द्रिय अने मन द्वारा पोत पोताना क्षयोपशम प्रमाणे आगम अथवा सांभलेल पदार्थ नु द्रव्य अने पर्याय थी जाणे छे अवधिज्ञानी अमुक हद सुधी इन्द्रिय अने मन विना रूपी पदार्थ नु प्रत्यक्ष पोत पोताना क्षयोपशम प्रमाणे द्रव्य अने पर्याय थी जाणे छे. मनः पर्यायज्ञानी अढी द्वीप मां रहेल संज्ञी पंचेन्द्रिय ना मनोभावो जागो छे. केवलज्ञानो एकज समय मां त्रिकालवी सर्व द्रव्य अने सर्व पर्यायो ने प्रत्यक्ष जागे छे. चक्षु नो विषय रूपी अने स्थूल पदार्थो जोवानो होवाथी चर्म चक्षु वालानो फक्त रूपी अने स्थूल पदार्थो जोई शके छे परन्तु रूपी होवा छतां सूक्ष्म पदार्थो चर्म चक्षु वालाअो जोई शकता नथी. कर्मो रूपी होवा छतां सूक्ष्म होवाथी चर्म चक्षु वालाप्रो जोई शकता नथी, परन्तु केवल ज्ञानी प्रो कर्मसमूहो सूक्ष्म होवा छतां केवल ज्ञान वड़े जाणी शके छे. मूलम्पात्रेववस्त्रादिषु गन्धपुद्गलाः सौगंध्यदौर्गध्यवतो हिवस्तुनः । ज्ञेयानसा तेन हिपिण्डभावं, गता अपीक्ष्या नयनादिभिस्तु ३१ गाथार्थ-पात्रमा अने वस्त्र आदि माँ सुगंध अने दुर्गन्ध