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जे जीव स्व योग्य पर्याप्ति पूरी करी मरण पामे ते पर्याप्तो कहेवाय छे परन्तु स्वयोग्य पर्याप्ति पूरी कर्या विना मरण पामे ते पर्याप्तो कहेवाय छे. जीव ज्यारे एक भव मां थी बीजा भव मां जाय छे त्यारे ते भव सम्बन्धी शरीर छोड़ी ने जाय छे. परन्तु तैजस अने कार्मण नाम नां बे शरीर मृत्यु पाम्या बाद बीजा भव मां परण साथे लई जाय छे एटले उत्पत्ति स्थान मां पण तैजस ने कार्मण सिवाय एकपण शरीर होतु नथी अने उत्पत्ति स्थान मां जई प्रथम पर्याप्ति रचवानुं कार्य जीव करे छे.
संसारी जीवन जीववा माटे पुद्गलो ना प्रालंबन द्वारा जीव जे शक्ति प्राप्त करे छे ते पर्याप्ति कहेवाय छे आहार पर्याप्ति :- उत्पत्ति स्थान मां रहेल ग्राहार नां पुद्गलो ने ले शक्ति बड़े ग्रहणकरी खल एटले मल प्रादि " रस एटले शरीर रचनादिमां उपयोगी रूपे परिणामा वे तेनु नाम आहार पर्याप्ति.
शरीरं पर्याप्ति :- रस योग्य पुद्गलो ने जे शक्ति बड़े सात धातु रूपे शरीर मय बनावे ते शरीर पर्याप्ति. इन्द्रिय पर्याप्ति :- रस रूपे जूदां पड़ेलां पुद्गलो मां थी तेमज सात धातु मय शरीर रूपे रचायेल पुद्गलो मां थी इन्द्रिय योग्य पुगद्लो ग्रहरण करी इन्द्रिय रूपे परिणामाव वानी जे शक्ति तेनुं नाम इन्द्रिय पर्याप्ति.