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नरेन्द्र, चक्रवर्ती अादि पदवियो, लक्ष्मी, सत्ता, निरो -गता स्वजन मिलन विगेरे शुभ फलो मले छे. अने जीव हिंसा, झूठ, चोरी मैथुन, परिग्रह, विश्वासघात, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, क्लेश, चाड़ी - खावी, कूडू कलंक देवु, रर्ष, शोक, निन्दा करवी, माया-मृषा वाद अने मिथ्यात्व आदि अशुभ कर्मो नो बंध करवाथी नरक गति , तिर्यंच गति , दारिद्रय , दौर्भाग्य , अंधापो , बहेरापणु, लूलापरणु, लंगड़ापरणु पराधीनता, विषकन्यापरणु, बोबड़ापणु, स्वजन-वियोग, कुरूपता, मूर्खपणु विगेरे अशुभ रूपो मले छे, प्रावु जाणनार एवो विद्वान् अने स्वतन्त्र होवा छतां अशुभ कर्मो नो केम ग्रहण करे ?
तेना प्रत्युत्तर मां जणाववा नु के विद्वान् अने स्वतन्त्र एवो आत्मा अशुभ कर्मो ना विपाक ने जाणवा छतां पण भवितव्यतादि नी प्रेरणा थी अशुभ कर्मो ग्रहण करेछे.
लम्तथाहि कश्चिद् धनवानपीह, खावेद भविष्यन्त्रिपति प्रणुनः। खलं विवोधनपि मोदकादि, स्वादिष्ट वस्तूनियतः स्वयंत्र ।४ गाथार्थ- ते प्रमाणे लाडू आदि स्वादिष्ट वस्तु ना स्वाद ने जाणतो छतो अने स्वतंत्र एवो धनवान पण भवितब्यतादि नी प्रेरणा थी खाल ने पण खाय छे तेम भवितव्यतादिनी