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एम पांचे कारणो मलवाथीज कोई पण कार्य नी उत्पत्ति थाय छे. चौद राज लोक मां सर्वत्र कर्मो रहेलां छे परन्तु ज्यारे जीव मन, वचन अने काया ना योग मां प्रवर्ते छे त्यारे स्वभावादि पांच कारणो ने योगे पोतानी आगल रहेला कर्मो ग्रहण करे छे .
मूलम्कर्माणि योगीन्द्र? जड़ानिसन्ति,तानिस्वयंनायितुं क्षमन्ते । प्रात्मातुबुद्धःस्ववमेवजानन्,कर्माण्यशस्तानिकथंहिलाति ।।२।। गाथाथ- हे योगीन्द्र ! कर्मो जड एटले चेतन रहित छे. तेग्रो पोतानी मेले तो जीव नो आश्रय लेवा माटे समर्थ नथी. आत्मा तो ज्ञानी छे एटले जाणतो छतो पोतानी मेलेज अशुभ कर्मों ने शा माटे ग्रहण करे ? विवेचन-- जगत मां पदार्थो बे प्रकार ना छे , चैतन्य वाला अने चैतन्य रहित, ते जड. चैतन्य वालो पदार्थ स्वतन्त्र रीतिये इच्छा मुजब कोई पण प्रवृत्ति करी शके छे परन्तु जड़ पदार्थो स्वतन्त्र रीतिये इच्छा मुजब कोई पण प्रवृत्ति करी शकता नथी. जड़ पदार्थो मां जे प्रवृत्ति देखाय छे तेमां जीव नी अवश्य प्रेरणा होय छे. जीव नी प्रेरणा बिना जड़ पदार्थ थी कई पण प्रवृत्ति थई शके नही. तेथी