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विवेचन:-महान् पंडितो पुरुषो नी अपेक्षाए पोतानी अल्प बुद्धि छे ते बतावतां कहे छे के आ जैन तत्त्व सार ग्रंथ मां प्रश्नोत्तर पद्धति में केवल सांसारिक कथन मां प्रसिद्ध छे ते मुजब करेली छे. परन्तु प्राचीन शास्त्र ना अभ्यास थी प्राप्त थयेल बुद्धि वालाग्रो मारा कहेल विचारों मां प्राचीन युक्ति ने घटावे छे. मूलम्:परं विचारेऽत्र न गोचरो मे,प्रायेण मुह्यन्ति मनीषिणोऽपि । अमुविना केवलिनंनवक्तु,व्यक्तोऽपिशक्तःसकलश्रुतेक्षी॥६॥ गाथार्थः परन्तु पूर्वे कहेल विचार मां मारो विषय नथी कारण के प्रा बाबत मां प्रायः विद्वानो पण मुंझाय छे. केवल ज्ञानी विना सकल श्रुत ना जोनार प्रगट होवा छतां पण प्रा विचार ने कहेवा ने समर्थ नथी. विवेचन:-जैन तत्त्वो नो सार केटलो गहन छे अने तेनुं केटलुं महत्त्व छे ते बतावतां कहे छे के आ विषयो ना तत्त्वो नुं रहस्य प्रगट कर, ए मारो विषय नथी अर्थात् तेमां मारी बुद्धि काम करी शके तेम नथी. प्रायः विद्वान् पुरुषो पण तेनुं रहस्य प्रगट करवामां मुंझाय छे कारण के केवली भगवंत विना सकल श्रुत ना जाणकार एवाः प्रागमधरो पण ते विचार ने कहेवाने समर्थ नथी.