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छेने एनाथी रहित थाय तेथी ए ज्ञान युक्त थाय छे एटले मोक्ष कह्यो छे.
विवेचन :- ए प्रमाणे बधाज मोक्ष ना अभिलाषी श्रात्माप्रो आत्म ज्ञान द्वाराज निश्चे मुक्ति इच्छवा योग्य छे. आत्म ज्ञान सिवाय मुक्ति प्राप्त करवामां बीजो कोई हेतु नथी. जे कारण थी उत्कृष्ट गुण वाला महापुरुषोए ग्रा प्रमाणे कां छे के जेटला काल पर्यंत या आत्मा कषाय अने विषय नुं सेवन करे छे त्यां सुधी आ प्रात्मा संसार रूप छे. अने आ आत्मा कषाय प्रने विषय रहित थयो छतो आत्म ज्ञान युक्त थाय छे तोज आत्मा नो मोक्ष थाय छे. मूलस्ः
ज्ञानं तथा दर्शनकंचरित्र - मात्मंषवाच्योन हिकिञ्चिदस्मात् । भिन्नं यदेतन्मयएवदेह - मेषधितस्तिष्ठतिकर्मनिष्ठः || १८ || गाथार्थ:--ज्ञान, दर्शन अने चारित्र एथी आत्माज छे. एना थी भिन्न कई परण नथी. जेथी कर्म युक्त या आत्मा शरीर मां रहेलो छे.
विवेचन :- गुण अने गुणी एकज होय छे अर्थात् गुणी मां गुण रहेला होय छे एटले गुणमय गुणी गणाय छे. ज्ञान, दर्शन अने चारित्र ए श्रात्मा ना गुणो छे. एटले ज्ञान, दर्शन अने चारित्र ए आत्माज छे. आत्मा थी अलग बीजी कोई