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________________ ( ३५१ ) करनार छे. ते पक्षी उडतां तेनी छायी जेना मस्तक ऊपर पड़े छे ते राजा थाय छे. या बाबत पक्षी पण जाणतो नथी अने जेना मस्तक पर छाया पड़े छे ते पण जाणतो नथी, तो पण छाया ना महात्म्य ना उदय थी दरिद्रता नाश पामे छे. तेम अजाणतां पण भगवान ना नाम स्मरण थी केम पाप नाश न पामे ? अर्थात् जरूर पाप नाश पामे छे. विवेचन:-तेज वस्तु ने वधु पुष्ट करतां जणावे छे के अस्थि भक्षण करनार हुमायु नाम नुं एक पक्षी छे. छतां ते हमेशां जीवो नुं रक्षण करनार छे. ए पक्षी उडतां उडतां जे मनुष्य ना मस्तक ऊपर तेनी छाया पडे तो ते मनुष्य राजा थाय छे. उड़ती वखते हुमायु पक्षी ना मन मां एम नथी के हुं ते मनुष्य ना मस्तक ऊपर छाया पाडु अने ते मनुष्य ना मन मां पण एम नथी के मारा मस्तक पर हुमायु पक्षी छाया पाड़े. एम बन्ने जण अजाण होवा छतां तेनी छाया ना महत्त्व ना उदय थी तेनी दरिद्रता नाश पामे छे अने ते राजा थाय छे. तेम तत्त्व थी अजाण एवानो पण भगवान ना नाम स्मरण थी पाप नो नाश केम न करे ? अर्थात् अवश्य पाप नो नाश करे छे. नृलम्अस्मिन्गते सर्वत आत्मशुद्धिः, सत्याममुष्यां परमात्मबोधः । जातेऽत्र नो कश्चन कर्मबन्धः,कर्मप्रणाशेकिलमोक्षलक्ष्मीः ।२८
SR No.022148
Book TitleJain Tattva Sar Sangraha Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherRanjanvijayji Jain Pustakalay
Publication Year1979
Total Pages402
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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