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. मूलम्-:
यद्वा पुनः कश्चिदपथ्यपथ्या- हारीह दुःखं च सुखं च भुङ्क्ते । नस्तस्तुते श्राहृतवस्तुनोयड्, एवं च सिद्धार्चनमात्मगामि ॥ १६ ॥ गाथार्थ :- वली जेम श्रा संसार मां कोई अपथ्य अथवा पथ्य भोजन करनार दुःख श्रने सुख ने भोगवे छे, परन्तु प्रहार करेल पदार्थ ने सुख अथवा दुःख थतुं नथी. ए. ते सिद्ध भगवंत नुं पूजन पूजन करनार ने आत्म प्राप्ति करावे छे.
विवेचनः - हवे उपसंहार करतां जगावे छे के जेम कोई मनुष्ये अपथ्य आहार कर्यो तो ते दुःखी थाय छे अने पथ्य आहार कर्यो तो सुखी थाय छे, परन्तु खावा योग्य पदार्थ ने कई पण दुःख अथवा सुख थतुं नथी. तेम सिद्ध भगवंत नी पूजा करवाथी पूजन करनार नेज श्रात्म प्राप्ति थाय छे. एम ग्रंथकारे प्रभु पूजा नी सिद्धि करी बतावी. :
॥ अथ एकोनविंशोऽधिकारः ॥
प्रतिमा पूजन नुं श्रा भव मां फल न मले तेनां कारणो. - मूलम्:
साधो ! वरंप्रोक्तमिदंपरं यथा, चिन्तामणिमुख्यमिहार्थकानाम् । सद्यः फलत्येवतथाऽत्रपार - मेशीफलेनोप्रतिमाचिताऽसौ ॥१॥