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आपे छे. तेवीज रीते खरेखर परमेश्वर नी प्रतिमा पूजायेली छती पुण्य नी सिद्धि माटे थाय छे. विवेचन:-अजीव एवा या दक्षिणावर्त शंख विगेरे स्पृहा वगर ना होवा छतां पण पोत पोताना वस्तुगत स्वभाव विशेष थी पा संसार मां प्राणियो ने इच्छित वस्तुप्रो आपे छे. तेवीज रोते खरेखर वीतराग देवनी या प्रतिमा पण पूजवाथी पूजनार ने पुण्य नी सिद्धि माटे थाय छे.
प्राप्त नियुक्त वस्तु नी विशेष मान्यताःचूलम्:सत्यं मुने! ऽदोऽस्ति परं य एते,स्युर्दक्षिणावर्तमुखाः पदार्थाः । अजीववन्तोऽपिविशिष्टजाति-भेदात्तथादुर्लभवस्तुभावात् २६ आराधिता अङ्गिमतं दिशन्ति,नेताहगर्चा किल पारमेश्वरी । अहो यदेषा सुलभोपलादि-मयी तदा कि सदृशीत्वऽमीभिः।३० गाथार्थ:-हे मुनि, या सत्य छे परन्तु दक्षिणावर्त विगेरे पदार्थो अजीव छतां विशिष्ट जाति ना भेद वाला होवाथी तथा दुर्लभ वस्तुप्रोना स्वभाव ना कारणे आराधायेल प्राणियो ने इच्छित फल आपे छे. परन्तु पारमेश्वरी प्रतिमा विशिष्ट जाति वाली नथी अने सुलभ पाषाण नी बनेली होवाथी दक्षिणावर्त शंख तुल्य केवी रीते थाय ?