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( ३१० ) गाथार्थ.-ए प्रमाणे अजीव एवी पोताना स्वामी नी प्रतिमा ने तेना नाम ग्रहण पूर्वक स्तवना करीने पूजनारा कुशल पुरुषो वड़े ज्ञानमय स्वामी पूजा ने प्राप्त थयेल होय छे. विवेचन:-ए रीते पोताना स्वामि ना नाम लेवा पूर्वक स्तवना-स्तुति करीने अजीव एवी स्वामि नी प्रतिमा ने पूजता एवा कुशल पुरुषो ज्ञानमय प्रभुनी पूजाने प्राप्त थयेल होय छे अर्थात् तेरो पूजाना फल ने प्राप्त थयेला होय छे.
तथा नियोज्यानपि कांश्चिदात्मनो,मूर्तिप्रभुर्मानयतोऽवसाय । तुष्यत्यसौतेषुतथैवमीशो-ऽचितोभवेत्तत्प्रतिमार्चनात्स्यात् ।२३ गाथार्थ:-जेम लौकिक स्वामि पोतानी मति ने मानता पोताना सेवको ने जारणी ने तेमना ऊपर खुश थाय छे, तेवीज रीते आ स्वामि तेनी प्रतिमा पूजवाथी पूजायेला थाय छे. विवेचन:-व्यवहार मां पण कोई शेठ पोतानी मूति,छबी, बावला विगेरे ने मानता एवा पोताना सेवको ने जाणी तेमना ऊपर खश थाय छे तेम आ लोकोत्तर स्वामि पण पोतानी प्रतिमा पूजन थी पूजायेला होय छे.