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( २६२ ) विवेचन:-द्रव्य द्वारा धर्म करतां पण गृहस्थो न संसार ना कार्यो मांथी पोतानुं मन पाछु हठे छे ते केवी रीते ? ते बतावतां कहे छे के द्रव्य थी धर्म करता गृहस्थो नी संसार ना कायों मांथी मन नी निवृत्ति थाय ते रोते गृहस्थो जिनेश्वर देव नी द्रव्य पूजा, साधुअोनी सेवा, प्रति लेखना प्रमार्जना अने दानादि कार्यो मां अपेक्षा पूर्वक पोताना मन ने स्थापे.
मूलम्:तद्यावतामी निजकेन्द्रियाणि, संवृत्य संसारभवक्रियातः । तदेव पूजादिकमाश्रयन्ता,मनः स्थिरं येनमनागपि स्यात् ।३० गाथार्थ:--ते कारण थी आ गृहस्थो पोतानी इन्द्रियो ने संसार नी क्रियानो थी रोकी ने जेटला प्रमाण मां थोडं पण मन स्थिर थाय ते प्रमाणे पूजादि करे. विवेचनः-संसार मां डूबेला गृहस्थो नुं मन चौवीशे कलाक संसार नी पाप क्रिया मांज रत होय छे तो तेमन मन धर्म मां केवी रोते स्थिर थाय, ते अहियां बतावे छे के गृहस्थो पोतानी इन्द्रियो संसार कार्यों थी रोकीने थोड़े पण मन स्थिर बने ते मुजब जिनेश्वर देवनी पूजादि तथा दानादि करे जेथी मन नी स्थिरता थाय.