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तो साधुग्रोए कोई ना प्रत्ये प्रेम रहित अने विलेपन रहित थर्बु जोइये. सिद्धो निष्क्रिय छे, तो साधुओए आरंभसमारंभ नां कार्यो नो त्याग करवो जोइये. सिद्धो स्पृहा रहित छे, तो साधुअोए कोई पण प्रकार नी आशा रहित थर्बु जोइये. सिद्धो स्पर्धा रहित छे, तो साधुओए वाद-विवाद थी शून्य थq जोइये. सिद्धो बंधन रहित छे, तो साधुप्रोए इच्छा मुजब विहार करवा वाला थq जोइये. सिद्धो संधि रहित छे, तो साधुअोए परस्पर मैत्री भाव थी रहित थर्बु जोइये. सिद्धो केवल दर्शन वाला छे, तो साधुओए सर्व जगत स्वभाव ने अनित्य रूपे जोनारा थq जोइये. सिद्धो आनन्द थी पूर्ण छे, तो साधुओए अन्तः करण शुद्ध राखq जोइये, अने समता भाव वाला थq जोइये. मूलमःइत्यादिका ये भगवद्गुणौघाः,शास्त्रेषुदृष्टा प्रथतान्प्रकल्प्य । मुमुक्षवोऽमी अपिशक्तियोग्य-माहत्यसिद्धन्त्यपितेक्रमेण ।१७ गाथार्थ:- विगेरे भगवंत ना गुण समूह जे शास्त्र मां प्रसिद्ध छे, तेमने अवलंबीने साधुनो यथा शक्ति ते गुणो ने आदरे छे ते ओ अनुक्रमे सिद्धि ने प्राप्त करे छे. विवेचन:-गणो नी प्राप्ति हमेशां गुणी पुरुषो नी पाराधना द्वाराज श्राय छे. हे मुमुक्षु आत्माओ ! जो तमारे पण