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( २७८ ) बतावेलां छे तेमो हिंसादि पांच मोटा पाप गणावेल छे. बीजा धर्म वालासोए पण आ पांच मोटां पाप बताव्यां छकोई पण त्रस के स्थावर, सूक्ष्म के बादर जीव ने हणवो नहीं; हणाववो नहीं अने हणता ने अनुमोदवो नहीं; झुठं बोलवू नहीं; झूठं बोलावq नहीं अने झुठं बोलनार नी अनुमोदना करवी नहीं; चोरी करवी नहीं, चोरी कराववी नहीं अने चोरी करतां ने अनुमोदवी नहीं; अने परिग्रह राखवो नहीं, परिग्रह रखाववो नहीं अने परिग्रह राखनार नो अनुमोदना करवी नहीं. ए प्रमाणे हिंसादि पांचे पापो नो त्याग करवाथी धर्म नी प्राप्ति थाय छे. माटे तेनो अवश्य त्याग करवो. ए प्रमाणे त्याग करवाथी चार घाती कर्म नो नाश थवाथी केवल ज्ञान पामी जीव सिद्ध भगवंत थाय छे. मूलम्:ये सत्यशीलक्षमतोपकारिता-सन्तोषनिर्दूषरणवीतरागताः । निःसङ्गताचाप्रतिबद्धचारिता-सज्जानितानिविकृतिप्रसन्नताः सद्गोष्ठितानिश्चलताप्रकाशिता-अस्वामिसेवित्वमतीवसत्त्वता निर्भीकताऽल्पाशनताविशिष्टता-संसारसम्बन्धजुगुप्सतादयः । प्रोदृशा अल्पगुरणा अभूवन,सिद्धिश्रितांते तु भवन्त्यनन्ताः । क्षेत्रस्वभावादथसिद्धभावा-धद्वाशिवात्केवलिवाक्प्रमाणात् ।६ गाथार्थ:-जे सत्य, शियल, क्षमता, उपकार, संतोष,दूषण रहित पणुं, वीतरागता, निसंगपणुं, अप्रतिबद्ध गमनागमन,