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( २६६) विवेचन:-जगत मां बधी वस्तुग्रो इन्द्रियो द्वारा जाणी शकाती नथी अने इन्द्रियो द्वारा न जाणी शकाय ते परोक्ष ज्ञान द्वारा जाणी शकाय छे. परोक्ष ज्ञान बीजा ना उपदेश थी थाय छे. तथा जगत मां जे सारी वस्तुप्रो छे अने खोटी वस्तुप्रो छे ते बधी वस्तुप्रो यथार्थ अने अयथार्थ रीतिए ए बधुं विस्तार थी अने संक्षेप थी बीजा द्वारा जाणी शकाय छे. मूलम्:यथान्त्र शुक्र कफपित्तवात-नाडीभ्रमं गुल्मयकृन्मलाशयाः । गण्डोलतापाधिकताप्तिवालकाः,कपालरोगा गलरोगविद्रधी। इत्यादिकं यत्तनुमध्यवस्तु, सामान्यमयनिजकेन्द्रियः स्वयम् । न ज्ञायते किन्तुपरोक्तिश्रुत्या, ज्ञेयं तदस्यप्रशमात्स्वसत्ता।३० गाथार्थः-जेम प्रांतरडां संबंधी, वीर्य संबंधी, कफ, वायु, पित्त, नाड़ी भ्रम, गुल्म, गलाशय रोग, करमिया, तावनी अधिकता, उष्णता, वाला नाम नो रोग इत्यादि जे वस्तुप्रो शरीर मां रहेल होय ते सामान्य माणसो पोतानी इन्द्रियो द्वारा पोतानी मेले जाणी शकता नथी; परन्तु बीजाना कहेवाथी जाणे छे. वली रोग नी सत्ता अने शान्ति सामान्य मारणसो पण जाणे छे. विवेचनः-जेम प्रांतरड़ा नी हानि के वृद्धि, वीर्य नी हानि के वृद्धि, कफ नो रोग, पित्तनो रोग, वायु नो रोग, नाड़ी